(राजेन्द्र जायसवाल)
वाराणसी(काशीवार्ता)। स्वास्थ्य महकमें के मरीजों के बेहतर चिकित्सा उपलब्ध कराने के दावे महज कागजों तक ही सीमित नजर आ रहे है। कबीर चौरा का मंडलीय अस्पताल इसका जीता-जागता उदाहरण है। यहां तीन डायलिसिस मशीनें है और एक ही टेक्नीशियन है। पिछले दो माह से अधिक समय में बिना नेफ्रोलॉजी डाक्टर के किडनी के मर्ज के 84 से अधिक मरीजों की डायलिसिस कर दी गयी है और यह क्रम जारी है। ऐसी दशा में किसी मरीज की हालत गंभीर होने पर उसकी जान के लाले पड़ सकते है। शासन का निर्देश है कि बेड के आभाव में किसी भी मरीज को दूसरे अस्पताल में रिफर न किया जाय। ऐसे में डायलिसिस के मरीजों का इलाज बेड नहीं कर सकता उसके लिए नेफ्रोलॉजी डाक्टर और टेक्नीशियन का होना आवश्यक है। यहां नेफ्रोलॉजी डाक्टर दिवाकर सिंह को शासन की तरफ से 6 लाख रुपए खर्च कर उन्हें नेफ्रोलॉजी की ट्रेनिंग लगभग तीन दशक पूर्व दिलाई गयी थी और उनकी तैनाती यहां थी, लेकिन दो माह पूर्व उनको प्रमोशन के साथ सीएमएस बना कर बलिया ट्रांसफर कर देने के बाद यहां किसी नेफ्रोलॉजी डाक्टर की तैनाती नहीं की गई। सूत्रों की माने तो प्रदेश में सरकारी नेफ्रोलॉजी डाक्टर हैं ही नहीं, अधिकांश जगहों के जिला अस्पतालों में पी पी माडल के तहत डायलिसिस यूनिट चल रही है । यही हाल यहां के प्लास्टिक सर्जरी विभाग का है । जहां एम सी एच प्लास्टिक सर्जन डा एके प्रधान के भी सेवानिवृत्त हुए 8 वर्ष से अधिक हो गए। लेकिन एक भी प्लास्टिक सर्जन यहां नहीं तैनात किए गये, जिसका खामियाजा जले हुए मरीजों वह कटे होठों वाले मरीजों को भुगतने के साथ डायलिसिस के लिए उन्हें अस्पतालों में हजारों रुपए खर्च करने पड़ते है। इस विभाग के भी प्रदेश में एक भी प्लास्टिक सर्जन नहीं है । बीते दस वर्षों से अधिक समय बीतने के उपरांत पूर्वांचल के एक मात्र बर्न यूनिट व नेफ्रोलॉजी विभाग की दशा यह है तो आगे का आलम क्या होगा। इस संबंध में अस्पताल के प्रमुख अधीक्षक डा प्रसन्न कुमार श्रीवास्तव ने बताया की नेफ्रोलॉजी डाक्टर के ट्रांसफर होने के बाद यहां फिजिशियन की देख रेख में डायलिसिस करायी जा रही है। वहीं प्लास्टिक सर्जन एके प्रधान के सेवानिवृत्त हो ने के बाद किसी प्लास्टिक सर्जन की इस अस्पताल में तैनाती नहीं हुई है।