दुनिया का रहनुमा, लोकतंत्र का प्रहरी, आतंकवाद का दुश्मन और खुद को सुपरपॉवर मुल्क मानने वाले देश की हालत इन दिनों ऐसी हो गई है कि उसके बारे में कहा जाने लगा है- एक था अमेरिका। पूरे विश्व में तनाव है और जिसकी वजह यूक्रेन सीमा पर रूसी सेना का फैलाव है। इधर अमेरिका बैन-बैन करता रहा और उधर पुतिन ने बिना किसी शोर-शराबे के बता दिया कि आप जो थे वो थे अब तो बस हम ही हम हैं। वैसे ये कोई पहला मौका नहीं है जब वैश्विक पटल पर बाइडेन सरकार की किरकिरी हुई हो। अफगानिस्तान में इतिहास के सबसे लंबे युद्ध से पीठ दिखाकर अमेरिका पहली फुर्सत में रुकसत हुआ और उसके बाद जो कुछ हुआ उससे दुनिया भली-भांति रूबरू है।
पुतिन की चाल ने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति को भी किया इम्प्रेस
रूस ने पहले यूक्रेन के दो क्षेत्रों- लुहांस्क और डोनेत्स्क को आजाद देश घोषित कर दिया। इन क्षेत्रों में यूक्रेन के विद्रोहियों का दबदबा है। नए फैसले के करीब 13 घंटे बाद रूस इन दोनों इलाकों में अपने सैनिक भेजने शुरू कर दिए। सामने आए विडियो में कई रूसी टैंकों को यूक्रेन में दाखिल होता देखा गया। इस बीच रूसी संसद के ऊपरी सदन ने राष्ट्रपति पूतिन को देश के बाहर सैन्य बल इस्तेमाल करने की अनुमति भी दे दी। इससे यूक्रेन में सेना भेजने का रूस का रास्ता साफ हो गया है। इधर, ब्रिटेन और अमेरिका ने आरोप लगाया, ‘विद्रोहियों और रूस की मिलीभगत है। यह सीधे तौर पर यूक्रेन पर किया गया हमला है। विद्रोहियों का सहारा लेकर रूसी सैनिक यूक्रेन की राजधानी तक दाखिल हो सकते हैं। पुतिन के इस फैसले पर ट्रंप ने कहा, ‘This is genius’। उन्होंने कहा, ‘तो पुतिन अब कह रहे हैं कि युक्रेन के एक बड़ा हिस्सा स्वतंत्र है, यह कितना स्मार्ट है? हम इसका इस्तेमाल अपनी दक्षिणी सीमा पर कर सकते हैं। मैं
कमजोर और बेबस नज़र आये बाइडेन
रूस की इस कार्रवाई के बाद सभी को इस बात का इंतजार था कि अमेरिका और नाटो का अगला कदम क्या होगा? व्हाइट हाउस से राष्ट्रपति जो बाइडेन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस किया। रूस पर कुछ आर्थिक प्रतिबंधों का ऐलान भी किया। रूसी राष्ट्रपति पुतिन के एक्शन के बाद अमेरिका ने दो संस्थानों को आर्थिक प्रतिबंध लगाने का ऐलान किया है। इसके साथ ही आर्थिक और व्यापार संबंधों को तुरंत रोकने का भी ऐलान किया गया है। बाइडेन के ऐलान के बाद अमेरिका ने रशियन टेक्नोलॉजी इलेक्ट्रॉनिक कंपनी पर एक्शन की तैयारी शुरू कर दी है। बाइडेन ये जरूर कहते नज़र आये कि रूस ने युद्ध थोपा तो अमेरिका रक्षा करने में सक्षम है। नाटो की हर एक-एक इंच सीमा का बचाव किया जाएगा। इसके साथ ही युद्ध टालने की कोशिश जारी रहने की बात कही। अगस्त 2021 से लेकर अब तक एक एक साल के भीतर ये दूसरी दफा हुआ है, जब दुनिया के सबसे पावरफुल देश अमेरिका के राष्ट्रपति इतने कमजोर और बेबस नजर आए। रूस को जो करना था उसने कर दिया। रूस के खिलाफ प्रतिबंधों की घोषणा तो अमेरिका ने कर दी है, लेकिन इससे आगे क्या? अमेरिका रूस के खिलाफ सैन्य कार्रवाही की हिम्मत करेगा, इसमें संदेह है।
चीन बनेगा सहारा
प्रतिबंधों का सवाल है तो रूस ने यह आकलन है करके ही ताजा कदम उठाया है कि वह संभावित आर्थिक प्रतिबंधों का सामना कैसे करेगा। यह साफ हो चुका है कि अमेरिका और यूरोपीय देशों द्वारा रूस के आर्थिक बहिष्कार से निपटने में चीन रूस का साथ देगा। इतिहास में पहले भी ऐसा देखने को मिला है। साल 2014 में रूस ने क्रीमिया पर कब्जा किया था। इसके बाद अमेरिका ने रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे। लेकिन उस वक्त चीन ने रूस की मदद की। नतीजा ये हुआ कि रूस की कंपनी गैसप्रोम ने चीन के साथ चार सौ बिलियन डॉलर की गैस डील साइन की। रूस को अच्छे दाम तो नहीं मिले लेकिन उसे ज्यादा नुकसान चीन की वजह से नहीं हुआ। रूस वर्तमान दौर में चीन को हथियार, मछली, टिम्बर खूब निर्यात कर रहा है। रूस के गैस, तेल का सबसे बड़ा खरीदार चीन है। चीन और रूस के बीच 147 बिलियन डॉलर का व्यापार है। 2015 में ये केवल 68 बिलियन था। चीन और रूस दूसरी पाइपलाइन पॉवर ऑफ साइबेरिया पर भी काम कर रहे हैं जो कभी भी खत्म हो सकती है।
किसी भी युद्ध मे धारणा का अहम रोल
पहले अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका को मुंह चिढ़ाता हुआ तालिबान राज और अब उसकी बैन वाली धमकी के बीच रूस की मनमर्जियां। किसी भी युद्ध में एक चीज सबसे महत्वपूर्ण है वो है धारणा। धारणा की जंग बहुत मायने रखती है कि आपके बारे में धारणा क्या है? अभी तक ये धारणा अमेरिका के बारे में ये था कि अगर इनसे किसी ने दुश्मनी मोल ली तो बहुत भारी पड़ेगी। लेकिन अब ऐसा प्रतीत होने लगा है कि ये धारणा में परिवर्तन हो गया है। अब लगने लगा है कि इनके पास क्षमता है पर इनके पास मनोबल नहीं है इच्छा शक्ति नहीं है। जिस दिन धारणा इस तरह की बन जाती है तो आपके विरोधियों को एक आत्मबल सौंप दिया।