(अजीत सिंह)
गाजीपुर (काशीवार्ता)। जिले में दिसंबर माह में प्रस्तावित स्थानीय निकाय के विधान परिषद चुनाव को लेकर छह बार विधायक, एक बार सांसद और दो बार सपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे ओपी सिंह पर सभी की निगाहें हैं। भाजपा एमएलसी विशाल सिंह चंचल का विजय रथ रोकने के लिए ओपी ही सपा के अंतिम खेवनहार और आस के रूप में सामने दिखाई दे रहे हैं। इसको लेकर यह चर्चा तेज हो गई है कि अगर अखिलेश का मूड ठीक रहा तो 16 को पखनपुरा आगमन के दौरान उनके सामने एमएलसी चुनाव पर मंथन हो सकता है। अखिलेश के आगमन पर सपा कार्यकर्ताओं एवं नेताओं में जहां भारी उत्साह देखा जा रहा हैं, वहीं सत्ताधारी दल भाजपा पल पल की गतिविधियों पर नजर रखे हुए है। सेवराई गांव निवासी ओमप्रकाश सिंह ने बीएचयू की छात्र राजनीति से सीधे 1989 में दिलदारनगर विधानसभा से पहला चुनाव जीतकर जिले की सियासत में जोरदार इंट्री मारी थी। उस समय वह जनता दल के उम्मीदवार थे। उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चंद्रशेखर का भी आशीर्वाद प्राप्त था। वह चंद्रशेखर को अपना राजनीतिक गुरू मानते थे। पहला चुनाव जीतने के बाद 1991 में रामलहर के बावजूद वह दिलदारनगर से सजपा उम्मीदवार के रूप में दूसरी बार भी जीतने में सफल रहे। 1992 में समाजवादी पार्टी का गठन हो चुका है। उन्होंने मुलायम सिंह की पार्टी से तीसरा चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। 1996 में भी उन्होंने चौथी बार जनता के आशीर्वाद से जीत दर्ज करके जमीनी नेता के रूप में अपनी पहचान बना ली थी। इसके बाद उनकी लोकप्रियता चरम पर पहुंच गई थी। 2002में उन्हें सपा ने दिलदारनगर से टिकट दिया और फिर जनता ने ओपी पर भरोसा जताया और वह पांचवीं बार विधायक बनने में सफल रहे। इस दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह ने ओपी की लोकप्रियता को देखते हुए कैबिनेट मंत्री बनाकर उन्हें परती भूमि एवं जल संसाधन विभाग का दायित्व सौंपा। लेकिन 2007 में जब बसपा लहर आई तो उन्हें पशुपति नाथ राय से हार का सामना करना पड़ा। 2012 में दिलदारनगर विधानसभा का अस्तित्व समाप्त हो गया। दिलदारनगर विधानसभा के अधिकांश गांव जमानियां विधानसभा में शामिल हो गए। सपा लहर का उन्हें फायदा मिला और वह छठवीं बार विधायक बने। इस दौरान भी उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया। फिर 2017 में मोदी लहर आई तो वह भाजपा नेत्री सुनीता सिंह से चुनाव हाकर तीसरे स्थान पर चले गए। इसके बाद सियासी रूप से बेरोजगार ओपी सिंह ने सपा बसपा के संयुक्त उम्मीदवार रहे सांसद अफजाल अंसारी की जीत के लिए काफी मेहनत की। इस दौरान यह चर्चा रही कि 2019 में उन्हें चंदौली की सीट से लोकसभा लड़ाया जाएगा, लेकिन अखिलेश ने उन्हें टिकट नहीं दिया। उन्होंने 2016 में मंत्री रहते हुए डा. सानंद सिंह को एमएलसी का टिकट दिलाया था। चुनाव के दौरान सानंद सिंह चंचल से बुरी तरह पराजित हो गए। लेकिन उन्होंने सियासी अनुभव जरूर लिया। अब 2021 में एमएलसी चुनाव होने जा रहे हैं। चंचल से 2016 के सियासी हार का बदला लेने के लिए ओपी के पास इससे सुनहरा मौका कभी नहीं आएगा।
मनोज सिन्हा को भी दे चुके हैं पटखनी
सपा ने ओपी को 1998 में मनोज सिन्हा के खिलाफ लोकसभा का गाजीपुर से चुनाव लड़ाया। वह सपा के उम्मीदों पर खरे उतरे और मनोज सिन्हा को हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद उन्होंने विधानसभा से इस्तीफा दे दिया। जब दिलदारनगर में उपचुनाव की घोषणा हुई तो उन्होंने अपने रिश्तेदार लल्लन सिंह को सपा से टिकट दिलवाकर दिलदारनगर से मैदान में उतारा। अब लल्लन सिंह और ओपी की राहें सियासत में जुदा हैं। ऐसा कहा जाता है कि उस समय भाजपा की सरकार थी और कड़े मुकाबले के बाद भी वह अपने रिश्तेदार लल्लन सिंह को चुनाव नहीं जीता पाए। और भाजपा के टिकट पर गोहदा गांव निवासी सिंहासन सिंह ने जीत दर्ज की। फिर जब मध्यवधि चुनाव हुए तो मनोज सिन्हा ने भाजपा प्रत्याशी के रूप में 1999 के चुनाव में अपनी हार का बदला लेते हुए दूसरी बार लोकसभा के सपा उम्मीदवार बने ओपी सिंह को धूल चटा दी।
ओपी को मैदान में उतारना सपा की मजबूरी
सियासी जानकार कहते हैं कि जब सपा में कोई बेहतर उम्मीदवार मैदान में नहीं आता है तो उन परिस्थितियों में ओपी का मैदान में उतरना सपा के लिए लाभ का सौदा होगा। क्योंकि ओपी सपा का बड़ा चेहरा हैं और राजनीति में अजेय हो चुके चंचल को सियासी रूप से पटखनी देने में दाढ़ी बड़ी भूमिका में नजर आ सकते हैं। मगर उनके समर्थकों की मंशा है कि नेताजी विधानसभा चुनाव लड़ें। क्योंकि वहां पर उनके पक्ष में अच्छा माहौल है।
जोश में समर्थक, चंचल ही जीतेंगे चुनाव
सपा के चर्चित नेता चंद्रिका यादव का कहना है कि ओपी सिंह ही ऐसे बड़े नेता हैं, जो चंचल को दूसरी बार एमएलसी बनने से रोक सकते हैं। दूसरी ओर चंचल के समर्थकों ने डंके की चोट पर एलान किया है कि कई ओपी भी लगेंगे तो इस बार विशाल सिंह चंचल को एमएलसी बनने से कोई रोक नहीं सकता।