गहलोत और पायलट के बीच की सियासी दूरी कोई नई नहीं


जयपुर। राज्यसभा चुनाव से शुरू हुआ सियासी ड्रामा अब कांग्रेस के गले की फांस बनता जा रहा है। राजस्थान में सियासी उठापटक तेज हो गई। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच की दूरियां भी बढ़ती जा रही है। वैसे तो इन दोनों नेताओं के बीच का मतभेद कोई नया नहीं है। इसकी शुरूआत तब से होती है जब गहलोत अपने दूसरे कार्यकाल का चुनाव हार गए थे और फिर सचिन पायलट का प्रदेश कांग्रेस पद की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।

मुख्यमंत्री पद को लेकर हुई तनातनी

कांग्रेस ने 2018 का विधानसभा चुनाव जीत लिया लेकिन इस चुनाव से पहले ही अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच दूरियां बढ़ गई। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने सचिन पायलट को टिकट बंटवारे को लेकर खुली छूट दे दी थी और फिर राजनीति के माहिर खिलाड़ी अशोक गहलोत ने अपने खेमे के लोगों को निर्दलीय चुनाव लड़ाया और करीबी लोगों में शामिल सुभाष गर्ग को राष्ट्रीय लोक दल से समझौते के आधार पर खड़ा करा दिया। 

साथ में दोनों नेताओं ने ली शपथ

उप मुख्यमंत्री का पद कैबिनेट दर्जे का होता है। इसके बावजूद सचिन पायलट ने जिद करते हुए मुख्यमंत्री के साथ उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और जनता के सामने एक संदेश दिया कि उनका कद अशोक गहलोत से कम नहीं है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जब विधायकों को मंत्री परिषद की शपथ लेनी थी उस वक्त सचिन पायलट ने अपनी कुर्सी राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बगल में लगवाई थी। उस वक्त अशोक गहलोत ने उन्हें समझाने का भी प्रयास किया था और कहा था कि उप मुख्यमंत्री का पद कोई संवैधानिक पद नहीं होता है लेकिन सचिन कहां मानने वाले थे। यह वही राहुल गांधी हैं जो कभी सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे और चुनाव के वक्त अशोक गहलोत और उन्हें एक साथ एक बराबरी का तौलते थे। रैलियों में दोनों नेताओं का हाथ एक साथ उठाते थे लेकिन अब दूरियां बढ़ गईं और इतनी ज्यादा बढ़ गईं कि सचिन पायलट ने बगाबत कर दी है। सूत्र बताते हैं कि सचिन पायलट सोमवार शाम तक केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात कर सकते हैं।