(राजेश राय) वाराणसी (काशीवार्ता)। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर बहू की राजनीति चर्चा में है। इस बार अपर्णा यादव को लेकर हलचल मची है। अपर्णा, मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू हैं। वैसे तो इनकी अभी कोई राजनीतिक पहचान नहीं है, लेकिन उनका मुलायम की बहू होना ही काफी है। चूंकि इस समय भाजपा और सपा में तगड़ी राजनीतिक रस्साकशी चल रही है इसलिये अपर्णा एकाएक महत्वपूर्ण हो गयीं है। बीजेपी के लिये वे कितनी महत्वपूर्ण हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनकी जब दिल्ली में भाजपा मुख्यालय में ज्वॉइनिंग हुई तो बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित लगभग सम्पूर्ण भाजपा उपस्थित थी। अपर्णा यादव पहले अपर्णा बिष्ट थीं। अखिलेश के सौतेले भाई प्रतीक की वे सहपाठी थीं। स्कूल की दोस्ती शादी के रिश्ते में बदल गयी।
देखा जाय तो भारतीय राजनीति में बहुओं का अच्छा खासा दबदबा रहा है। वैसे तो राजनीतिक बहुओं की लिस्ट लंबी है, पर उनमें कुछ खासी चर्चा में रही हैं। उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय रेल मंत्री कमलापति त्रिपाठी की बहू चन्द्रा त्रिपाठी 70 के दशक में काफी चर्चित रही हैं। राजनीतिक हलकों में लोग उन्हें ‘बहूजी’ के नाम से जानते थे। वे कमलापति के पुत्र लोकपति त्रिपाठी की पत्नी थीं। वे सिंधी परिवार से थीं। शादी के पहले उनका नाम चन्द्रा मलकानी था। कहा जाता है कि जब कमलापति त्रिपाठी रेल मंत्री थे तो बिना बहू जी की मर्जी के मंत्रालय में पत्ता भी नहीं हिलता था। वे जिला कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष भी रहीं। सन 1984 के लोकसभा चुनाव में वे चंदौली से जीत कर लोक सभा भी पहुंची। वे वाराणसी के औरंगाबाद हाउस में जीवनपर्यंत राजनीति के केंद्र बिंदु में बनी रहीं।
राष्ट्रीय परिदृश्य पर गौर करें तो पाएंगे कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की दोनों बहुएं हमेशा चर्चा में रही। छोटी बहू मेनका गांधी पहले मेनका आनन्द थीं। इंदिरा गांधी के छोटे पुत्र संजय गांधी से उनका विवाह हुआ तो वे मेनका गांधी बन गयीं। वे सिख परिवार से थीं। उनके पिता कर्नल आनन्द सेना में थे। हालांकि इंदिरा गांधी इस रिश्ते के खिलाफ थीं, परन्तु पुत्र की जिद के आगे उन्हें झुकना पड़ा। इंदिरा गांधी, संजय गांधी को अपना राजनीतिक वारिस बनाना चाहती थीं, लेकिन एक विमान दुर्घटना में संजय की मृत्यु के बाद प्रधानमंत्री निवास में रह रहीं मेनका गांधी के बुरे दिन शुरू हो गए। जिसकी परिणीति मेनका गांधी की ससुराल छोड़ने से हुई। जब एक दरवाजा बंद हुआ तो दूसरा खुला। भाजपा ने गांधी परिवार की इस बहू को लोकसभा का टिकट देकर सांसद और मंत्री बनाया। मेनका और उनके पुत्र वरूण वर्तमान में भाजपा से सांसद हैं।
बड़ी बहू सोनिया गांधी को कैसे भूला जा सकता है। सोनिया, इंदिरा गांधी के बड़े पुत्र और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पत्नी थीं। वे इटली की मूल निवासी थीं। शादी के पहले उनका नाम अंटोनियो माइनो था। शादी के बाद वे सोनिया गांधी बन गयीं। राजीव गांधी की एक बम धमाके में मौत के बाद कुछ समय तक तो वे खुद को और अपने बच्चों को सम्हालने में व्यस्त रहीं, लेकिन बाद में उन्होंने कांग्रेस की राजनीति में दखल देना शुरू किया। हालांकि कई अवसर ऐसे आये जब वे प्रधानमंत्री बनने के काफी करीब थीं, लेकिन किस्मत और भारतीय राजनीति को कुछ और ही मंजूर था। विरोधियों ने उनके विदेशी मूल का मुद्दा उठा कर देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचने का रास्ता रोक दिया। हालाँकि डा. मनमोहन सिंह के दस साल के प्रधानमंत्रित्व काल में उनकी हैसियत किसी प्रधानमंत्री से कम नहीं थी। उनके लिये राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का सृजन किया गया, जिसकी वे अध्यक्ष बनीं। परिषद का काम केंद्र सरकार को नीतिगत सलाह देना था। सोनिया को कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त था। इस प्रकार देखा जाय तो भारतीय राजनीति में अनेक अवसरों पर बहुओं ने घर की डयोढ़ी लांघ कर राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है और इस धारणा को गलत साबित किया है कि बहुओं का काम सिर्फ घर संभालना है।