आलू के दाम एक साल में 92% और प्याज़ के दाम 44% बढ़े


बीते एक साल में सिर्फ़ गेहूं को छोड़कर खाने की अधिकतर ज़रूरी चीज़ों के खुदरा मूल्यों में काफ़ी बढ़ोतरी दर्ज की गई है.

अंग्रेज़ी अख़बार टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट मुताबिक़, आलू के दामों में जहाँ पिछले एक साल में 92 फ़ीसदी की वृद्धि हुई है वहीं प्याज़ के दाम 44 फ़ीसदी बढ़े हैं.

उच्च खाद्य मुद्रास्फीति आर्थिक नीति के लिए बड़ी चिंता के रूप में उभरी है लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह बढ़ोतरी अस्थायी है और जब अधिक आपूर्ति होगी तो यह दाम नीचे आएंगे.

उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के जारी किए गए आँकड़ों में एक तुलनात्मक विश्लेषण किया गया है जिसके अनुसार प्याज़ के औसत थोक दामों में 108 फ़ीसदी की बढ़त दर्ज की गई है.

मंत्रालय के मुताबिक़, एक साल में प्याज़ के दाम 1,739 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 3,633 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच चुके हैं.

पिछले साल से अगर तुलना की जाए तो शनिवार को प्याज़ का थोक दाम 5,645 रुपये प्रति क्विंटल था जबकि तकरीबन एक साल पहले यह दाम 1,739 रुपये प्रति क्विंटल था.

झारखंड में छात्रवृत्ति के नाम पर हो रहा था बड़ा घोटाला

अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी जाँच में पाया है कि झारखंड के कई ज़िलों में ब्रोकर, बैंक संवाददाताओं, स्कूल स्टाफ़ और राज्य के सरकारी कर्मचारियों ने साथ मिलकर केंद्र की अल्पसंख्यक छात्रों को दी जाने वाली प्री-मैट्रिक स्कॉलरशिप में कथित घोटाला किया है.

अख़बार के अनुसार, उसने रांची, धनबाद, लातेहार, रामगढ़, लोहरदगा और साहिबगंज के ऐसे स्कूलों का पता लगाया है, जहाँ पर ग़रीब छात्रों और उनके परिवारों को कथित तौर पर ठगा जाता था.

इस जाँच के लिए अख़बार ने कई छात्रों, उनके परिवारों, स्कूल स्टाफ़ और राज्य में छात्रवृत्ति बाँटने वाले नोडल स्टाफ़ झारखंड राज्य अल्पसंख्यक वित्त और विकास निगम के कर्मचारियों से भी बात की है.

इसके अलावा अख़बार ने नेशनल स्कॉलरशिप पोर्टल के डेटा के साथ-साथ पब्लिक फ़ाइनेंस मैनेजमेंट सिस्टम में मौजूद लाभार्थियों के बैंक अकाउंट के रिकॉर्ड को भी चेक किया है.

2019-20 में केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय ने पूरे राष्ट्र के लिए 1,400 करोड़ रुपये छात्रवृत्ति के तौर पर जारी किए थे, जिसमें से झारखंड के हिस्से 61 करोड़ रूपये आए थे.

जेएमएम-कांग्रेस-राजद की गठबंधन सरकार के लिए इस छात्रवृत्ति का ख़ासा राजनीतिक महत्व है क्योंकि यह योजना 2008 में यूपीए सरकार के दौरान शुरू हुई थी.

प्री-मैट्रिक स्कॉलरशिप योजना की शुरुआत उन अल्पसंख्यक (मुस्लिम, ईसाई, सिख, पारसी, जैन, बौद्ध) समुदायों के छात्रों के लिए शुरू हुई थी जिनकी पारिवारिक आय एक लाख रुपये सालाना से कम है.

इसे पाने के लिए छात्रों को अपनी कक्षा में कम से कम 50 फ़ीसदी नंबर लाने होते हैं.

पहली से पाँचवीं क्लास तक के छात्रों को 1,000 रुपये प्रति वर्ष, छठी से 10वीं क्लास तक के छात्रों को जो हॉस्टल में रहते हैं उन्हें 10,700 रुपये प्रति वर्ष दिए जाते हैं और हॉस्टल से बाहर रहने वाले छात्रों को 5,700 रुपये प्रति वर्ष दिया जाता है.

अख़बार ने बताया है कि उसकी जाँच में छठी से 10वीं कक्षा के छात्रों को दी जाने वाली छात्रवृत्ति में अनियमितता पाई गई हैं, जहाँ पर छात्रों को कम स्कॉलरशिप दिए जाने का रैकेट चल रहा था. यह रैकेट अधिक से अधिक छात्रों को किसी स्कूल में दिखाता था.

अर्थशास्त्री ज़्यां द्रेज़ ने कहा है, “यह घोटाला एक ओर उदाहरण है जो आधार आधारित पेमेंट सिस्टम की कमज़ोरियों को दिखाता है.”

पश्चिम बंगालसीपीएम-कांग्रेस में हो सकता है गठबंधन

पश्चिम बंगाल में अगले साल अप्रैल में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र सीपीएम ने साफ़ किया है कि बीजेपी और टीएमसी को हराने के लिए उसकी सभी सेक्युलर पार्टियों से चुनावी सहमति बन गई है.

द हिंदू अख़बार के मुताबिक़, सीपीएम की यह सहमति कांग्रेस के साथ भी बनी है.

पार्टी के पोलित ब्यूरो के इस फ़ैसले को सेंट्रल कमिटी के पास भेजा गया था जिसे उसने अनुमति दे दी है.

सेंट्रल कमिटी की दो दिवसीय बैठक के बाद सीपीएम महासचिव ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा, “पश्चिम बंगाल में सीपीएम की सभी लेफ़्ट फ़्रंट और कांग्रेस के साथ सभी सेक्युलर पार्टीयों के साथ सहमति बन गई है जो बीजेपी और टीएमसी को हराना चाहते हैं.”

दिल्ली में लॉकडाउन के बाद बढ़ा ट्रैफ़िक

राजधानी दिल्ली में कोविड-19 महामारी के कारण मार्च में लगाए गए लॉकडाउन के बाद कुल गाड़ियों के ट्रैफ़िक में 10 फ़ीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है.

हिंदुस्तान टाइम्स अख़बार के अनुसार, विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा लगता है कि सार्वजनिक परिवहन को सीमित करने और संक्रमण के ख़तरे को देखते हुए ट्रैफ़िक में बढ़ोतरी हुई है.

दिल्ली ट्रैफ़िक पुलिस के कंट्रोल रूम के आँकड़े बताते हैं कि मार्च के महीने में दिल्ली में पीक आवर में जितना ट्रैफ़िक सड़कों पर था वे सितंबर और अक्तूबर में 10 फ़ीसदी तक बढ़ गया है.