रविंद्रपुरी ही नहीं शहर की सभी सड़कें हो गयी ऊंची


विशेष प्रतिनिधि
वाराणसी (काशीवार्ता)। एक समय था जब पीडब्ल्यूडी के इंजीनियरों को सड़क निर्माण की तकनीक सीखने सरकार जर्मनी भेजती थी। जर्मनी की सड़कों को विश्व में सबसे उत्कृष्ट माना जाता है। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान हिटलर ने देश की सड़कों को सीधा करवा दिया था। हिटलर का मानना था कि फौज को सीमा पर पहुंचने में देर हो गई तो युद्ध का नक्शा बदल सकता है। एक तरफ जर्मनी है तो दूसरी तरफ उत्तरप्रदेश का पीडब्ल्यूडी विभाग। इस विभाग को इतनी बुनियादी समझ नहीं है कि सड़कों को ऊंचा करने से किनारे के मकान नीचे हो जायेंगे। इससे बरसात में मकानों के अंदर पानी घुस जायेगा। यह तो रविंद्रपुरी कॉलोनी का मामला मंत्री जतिन प्रसाद के समक्ष उठा और त्वरित कार्रवाई हुई वरना पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर तो अपना काम कर ही चुके थे। पीडब्ल्यूडी की यह मनमानी सिर्फ रविंद्रपुरी तक ही सीमित नहीं है बल्कि पिछले एक डेढ़ दशक में पीडब्ल्यूडी ने पूरे शहर की सड़कों को तीन से चार फीट तक ऊंचा कर दिया। हाल ही में कचहरी चौराहे से सर्किट हाउस जाने वाली सड़क को जी 20 की तैयारी के नाम पर लगभग 6 इंच ऊंचा कर दिया। परिणाम यह हुआ कि डिवाइडर सड़क की सतह के बराबर हो गया। इसके बाद पीडब्ल्यूडी ने नया डिवाइडर बनाया। यह सड़क निर्माण के कई चरणों में दो से तीन फीट ऊंची हो गई। अब हालत यह है कि कचहरी परिसर नीचे पहुंच गया है और सड़क ऊपर। कुछ यही स्थिति कचहरी वरुणा पुल की है। सड़क ऊंची होते होते पुल के फुटपाथ के बराबर पहुंच गई है। अगर वाहन चालक सावधानी से न चलें तो पुल की रेलिंग से टकराना तय है। कुछ साल पहले एक एसयूवी रेलिंग तोड़ते वरुणा नदी में गिर पड़ी थी। शहर की अन्य सड़कें मसलन कैंट से बीएचयू, कैंट से मैदागिन, सिगरा से महमूरगंज आदि सड़कें भी पीडब्ल्यूडी की इसी ज्यादती की शिकार हुई है। कुछ साल पहले कभी किनारे के मकान सड़क से तीन से चार फीट ऊपर हुआ करते थे। अब या तो वे बराबर हैं या सड़क से नीचे। अब पीडब्ल्यूडी की मेहरबानी से मकानों में बरसाती पानी घुस जाता है। लोग बरसात में प्रकृति की पीड़ा भोगने को मजबूर हैं। पीडब्ल्यूडी की मेहरबानी से रातों रात सड़कें ऊंची हो जा रही हैं। सुबह नींद खुलने पर पता चलता है कि मकान छह इंच नीचे धंस गया। नियमानुसार किसी भी सड़क पर कोलतार की नई परत बिछाने से पहले पुरानी परत को उखाड़ना चाहिए।इसे या तो रीसाइकल कर दुबारा बिछाया जाना चाहिए या फिर नए डामर को गिट्टी में मिक्स करके बिछाना चाहिए। यह तकनीक बरसों पुरानी है जो दिल्ली मुंबई जैसे शहरों में अरसे से प्रयोग में लाई जा रही है लेकिन हैरत है इस तकनीक का प्रयोग बनारस में नहीं हो रहा है। जानकारों का कहना है कि नई तकनीक इस्तेमाल न करने के पीछे विभाग में व्यापक स्तर पर फैला भ्रष्टाचार है। पुराने तकनीक से सड़क बनाने में ज्यादा मैटीरियल की खपत होती है। मतलब ज्यादा कमीशन।यह विभाग में सबको पता है। लेकिन मनमानी जारी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि रविंद्रपुरी प्रकरण भविष्य में शहर की सड़कों के निर्माण में नजीर साबित होगा।