वाराणसी। एक समय था, जब बेनियाबाग का नलकूप इलाके के लोगों की पानी की जरूरतें पूरी कर देता था। धीरे-धीरे जलस्तर नीचे जाने के साथ यह लोगों की जरूरतें पूरी करने में असमर्थ साबित होने लगा।
जलस्तर नीचे जाने के कारण, एक समय ऐसा आया कि यह नलकूप ठप हो गया। 22 साल पहले इलाके में 10 मीटर पर पानी मिलता था। अब 16 से 18 मीटर पर पानी मिल रहा है। यही हाल दारानगर के नलकूप का है। अब इन इलाकों के लोग जलकल की आपूर्ति या निजी बोरिंग पर आश्रित हैं। नलकूप ही नहीं, इसी साल 800 हैंडपंप और 50 कुएं भी सूख चुके हैं। भूगर्भ विभाग के अनुसार साल में पानी तकरीबन एक मीटर नीचे जा रहा है। यही हाल रहा तो आने वाले दिनों में लोग बूंद-बूंद पानी के लिए तरस जाएंगे। बारिश के दिनों में जलस्तर कुछ ऊपर होता है। लेकिन, बरसात के बाद पानी नीचे चला जाता है। शहर और आराजी लाइन व हरहुआ ब्लॉक अतिदोहित क्षेत्र में हैं वहीं पिंडरा ब्लॉक क्रिटिकल क्षेत्र में हैं। बड़ागांव, चिरईगांव, चोलापुर, काशी विद्यापीठ व सेवापुरी ब्लाक सेमी क्रिटिकल क्षेत्र में हैं। यहां तक की कॉलम पाइप बढ़ाने पर भी जनता को पानी नहीं मिल रहा है। नए सिरे से और अधिक बोरिंग कराने पर ही लोगों को पानी मिल पाएगा।
अंधाधुंध निजी बोरिंग पर चिंता जताई जा रही है। पानी के अंधाधुंध दोहन को नहीं रोका गया तो आने वाले दिनों में पानी के लिए झगड़े होने आम बात हो जाएंगे। शहरी क्षेत्र के डार्क जोन में जाने की वजह नदी आधारित सरकारी पेयजल योजनाओं का फेल होना है। बीते एक दशक में 500 करोड़ से अधिक बजट से गंगा आधारित पेयजल योजना को मूर्तरूप दिया गया लेकिन भ्रष्टाचार के कारण वह अब तक पूर्ण नहीं हुआ। लिहाजा, 20 लाख की शहरी आबादी के साथ ही कल-कारखानों की जरूरतों को पूरा करने के लिए भूगर्भ जल का अतिदोहन ही किया जा रहा है। वहीं, दूषित पेयजल आपूर्ति के कारण पानी के अवैध कारोबार को बढ़ावा मिला है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी नहरों के अभाव के कारण भूगर्भ जल से ही सिंचाई हो रही है तो वहीं कुंड व तालाब पाटे जाने से जल संरक्षण की दिशा में कुठाराघात हुआ है।