सावन का पांचवां और आखिरी सोमवार: काशीपुराधिपति के दरबार में आस्था का अखंड जलधार


अलसुबह से शिवभक्त बैरिकेडिंग में कतारबद्ध कोविड प्रोटोकाल का पालन कर रहे दर्शन पूजन
बड़ी संख्या में कांवरिया भी दर्शन पूजन के लिए पहुंचे,मंदिर परिक्षेत्र में सुरक्षा की चाक चौबंद व्यवस्था
वाराणसी। सावन माह के पांचवें और आखिरी सोमवार पर काशी पुराधिपति बाबा विश्वनाथ के दरबार में आस्था की अखंड जलधार बहती रही। कोरोना संकट काल में श्रावणी पूर्णिमा और रक्षाबंधन पर्व पर दरबार में अलसुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। कोविड प्रोटोकाल का पालन कर दरबार में पंहुचे श्रद्धालुओं ने पावन ज्योर्तिलिंग की झांकी का दर्शन कर परिवार में सुख शान्ति और वैश्विक महामारी कोरोना से मुक्ति के लिए गुहार लगाई। कड़ी सुरक्षा के बीच अलसुबह से पूर्वांह 11 बजे तक लगभग पांच हजार श्रद्धालु दरबार में दर्शन पूजन कर चुके थे। खास बात यह रही कि आखिरी सोमवार को बाबा दरबार में बड़ी संख्या में कांवरियां भी जलाभिषेक के लिए पहुंचे थे। शिवभक्तों की कतार ढुढिराज गणेश से होते हुए बांसफाटक और वहां से केसीएम मॉल तक दिखाई दी। गंगा घाट से लेकर दरबार तक हर हर बम बम,हर—हर महादेव का गगनभेदी उद्घोष गूंजता रहा।
चेहरे पर मास्क लगाये शिवभक्त बैरिकेडिंग में कतारबद्ध होने के बाद मंदिर के प्रवेश  द्यारों पर सैनिटाइज होते रहे। तीनों प्रवेश द्वारों पर लगे थर्मल स्कैनिग की प्रक्रिया के बाद मंदिर में एक बार में केवल 5 शिवभक्तों को प्रवेश मिलता रहा।
इसके पूर्व तड़के बाबा के विग्रह को परम्परानुसार विधि विधान से पंचामृत स्नान कराया गया। वैदिक मंत्रोच्चार के बीच भव्य श्रृंगार कर मंगला आरती के बाद मंदिर का पट सुबह पांच बजे शिवभक्तों के लिए खुल गया। इसके साथ ही श्रद्धा की कतार बाबा के जलाभिषेक के लिए दरबार में उमड़ पड़ी। मंदिर परिक्षेत्र में शिवभक्तोें के हर-हर महादेव का उद्घोष से पूरा माहौल शिवमय नजर आया। अपरान्ह बाद शिव परिवार का झूला श्रृंगार झांकी देखने के लिए शिवभक्त व्याकुल नजर आये।
शिवभक्तों की सुरक्षा की कमान सीओ दशाश्वेमध अवधेश पांडेय,चौक और दशाश्वमेध थाना प्रभारी ने संभाल रखी थी। उधर, झूला श्रृंगार के लिए पूरे दरबार परिसर को सजाया गया है। पूरा दरबार गुलाब सहित विविध फूलों और अशोक की पत्तियों से निखर गया है। शाम को बाबा की पंचबदन प्रतिमा को पूर्व महंत डा.कुलपति तिवारी के टेढ़ीनीम स्थित आवास से पालकी पर लाने के बाद गर्भगृह में झूले पर बैठाकर पूजा अर्चना की परंपरा का निर्वहन किया जाएगा।