कई देशों में है यह प्रतिबंधित, भारत में धड़ल्ले से हो रहा है इसका प्रयोग
वाराणसी(काशीवार्ता)। मुंह में आया कोरोना जब मौत बनकर नाचने लगा तो देशभर में चीख-पुकार मच गई। इसे खत्म करने के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास किए जाने लगे। लेकिन हम पिछले कई वर्षों से एक साइलेंट किलर के शिकार हो रहे हैं। इसको लेकर न तो सरकार जाग रही न ही आमजन जागृत हो रही है। यह साइलेंट किलर है ग्लाईफोसेट। इस जहरीले पदार्थ का खेतों और अन्य जगहों पर जमकर इस्तेमाल हो रहा है। किसान खेतों में खरपतवार हटाने के लिए आज भी इसका इस्तेमाल कर रहे हैं।
देश में हुए कई शोध ने इसे मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक माना है ,लेकिन इसको लेकर न तो केंद्र न ही राज्य सरकारें गंभीर हैं। हालांकि इसकी गंभीरता को देखते हुए कुछ राज्यों ने इसके इस्तेमाल को सीमित करने की कोशिश जरूर की है। लेकिन बड़े पैमाने पर इसका कोई फायदा होता नहीं दिख रहा ।जब तक केंद्र सरकार की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता है, इस पर पूरी तरह से अंकुश लगा पाना संभव नहीं है। जानकारों का कहना है कि इसका दुष्प्रभाव आज पूरी दुनिया जान चुकी है, लेकिन कारपोरेट के प्रभाव की वजह से सरकार इसे पूर्ण रूप से प्रतिबंधित करने में असमर्थ साबित हो रही है। इस रसायन के खतरनाक स्तर का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि यवतमाल में इस रसायन के छिड़काव के दौरान इसके संपर्क में आने से 23 किसानों की मौत तक हो गई थी।
वहीं अमेरिका के कैलिफोर्निया में रसायन बनाने वाली एक कंपनी पर 14000 करोड़ का जुमार्ना तक लगा दिया गया था। भारत में आज भी सरकार इस खतरनाक रसायन के इस्तेमाल को लेकर कहीं से गंभीर नहीं दिखती, जबकि भारतीय विस विज्ञान अनुसंधान संस्थान अपनी रिपोर्ट में इसको लेकर स्वास्थ्य संबंधी प्रभाव के बारे में चेतावनी दे चुका है। वर्तमान में भारत के अंदर कपास, सोयाबीन, गेहूं आदि फसलों की खेती में ग्लाइफोसेट का जमकर इस्तेमाल हो रहा है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि ऐसे खतरनाक रसायनों के प्रयोग के बाद उत्पादित फसलें इंसानी सेहत के लिए कितनी फायदेमंद हो सकती है। -साभार