वाराणसी(काशीवार्ता)। पत्थरों को तराश कर एक आकृति के अंदर दूसरी आकृति फिर उस आकृति के अंदर हूबहू तीसरी आकृति वो भी बिना किसी जोड़ के बनाना काशी के कलाकारों की नायाब कलाकारी है। वाराणसी सॉफ्ट स्टोन जाली वर्क के नाम से विश्व में मशहूर हो रहे इस हुनर को मोदी-योगी सरकार बनने के बाद से नई पहचान मिली है। जीआई उत्पाद में शामिल सदियों पुरानी इस कला से मुंह मोड़ चुके कारीगर एक बार फिर इससे जुड़ने लगे हैं। योगी सरकार प्रदेश के शिल्पकलाओं को वैश्विक मंच देने में जुटी हुई है। इसके तहत जीआई उत्पादों की ब्रांडिंग शुरू की गई है। इससे इन उत्पादों को पंख लग गए हैं। इसी में से एक है “वाराणसी सॉफ्ट स्टोन अंडर कट जाली वर्क”। इसकी खासियत ये है कि एक ही पत्थर के टुकड़े में बिना किसी जोड़ के पाईप के सहारे अन्डरकटवर्क से नायाब कलाकृतियां बनाई जाती हैं। जैसे एक ही पत्थर से बने हाथी के अंदर दूसरा हाथी, उसके भी अन्दर एक और हाथी अथवा कोई अन्य पशु पक्षी या आकृति को उकेरा जाता है। जीआई एक्सपर्ट पद्मश्री रजनीकांत मिश्र ने बताया कि ये कला लुप्तप्राय हो चुकी थी, मगर सरकार की नीतियों से इस कला का कारोबार आज 10 से 12 करोड़ हो गया है। शुरूआती समय में रामनगर के कारीगरों को काशी नरेश के पूर्वजों के द्वारा राज आश्रय मिला। कालांतर में लुप्तप्राय होने की कगार पर पहुंच चुकी इस पारंपरिक कला को मोदी-योगी सरकार का आश्रय मिला तो यही कला अब विश्व बाजार में अपनी धाक जमा रही है। यूरोप, खाड़ी देश, बुद्धिस्ट देश और अमेरिका के बाजार तक इस कला की दीवानगी बढ़ गई है। लगभग 500 से 700 कारीगर अभी भी इस परम्परागत उद्योग में लगे हुए हैं।
काशी की कला की दुनिया कायल
स्टेट अवार्ड विजेता द्वारिका प्रसाद ने बताया कि योगी सरकार सैकड़ों साल पुरानी इस कला को जिन्दा करके नई पहचान दे रही है। एक समय था जब कारीगर बिजली की समस्या, बाजार न होने और अन्य समस्याओं से यह काम छोड़ रहे थे। योगी सरकार की नि:शुल्क टूल किट वितरण, स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम ने इस हुनर को निखारा है। खास करके सरकार द्वारा ब्रांडिंग और विदेशी मेहमानों को उपहार स्वरुप इसे भेंट करने से इसकी ख्याति सात समुंदर पर तक पहुँच गई है। देश के साथ ही विदेशों में भी इसकी मांग बढ़ रही है, जिससे अब कारीगरों को नये आॅर्डर मिल रहे हैं।
लुप्त हो रही परंपरागत प्राचीन कला को योगी सरकार ने किया जिंदा