(राजेश राय)
वाराणसी (काशीवार्ता)। नगर से लुप्त हो रहे सिनेमाघरों की कड़ी में शीघ्र ही एक नया नाम जुड़ जाएगा। वह है साहू पैलेस का। लगभग सत्तर साल पुराने शीरीन टॉकीज उर्फ प्राची सिनेमा उर्फ साहू पैलेस का अस्तित्व मिटने के कगार पर है। पीछे का बड़ा हाल ध्वस्त हो चुका है।साइड की दीवारें भी गिरा दी गयीं हैं। अब सिर्फ सामने की दीवार बची है। प्रवेश द्वार पर र्इंट की चिनाई हो चुकी है।बीचोबीच एक स्थान पर साहू पैलेस लिखा है। इसी से पता चलता है कि यहाँ कभी एक सिनेमाघर हुआ करता था।सामने की दीवार के एक तरफ बालकनी की खिड़की बनी है जिसपर रेट 20 रुपये लिखा है। इससे पता चलता है कि हाल को बंद हुए लगभग दो दशक बीत चुके हैं। सामने की दीवार के दूसरी तरफ रोजाना चार शो और पहला शो दिन में एक बजे से लिखा है। पहला शो दिन में एक बजे से करने के पीछे भी एक कहानी है। यह सिनेमाहाल नई सड़क के मुस्लिम बाहुल्य इलाके में था। दोपहर की नमाज के बाद ही पहला शो शुरू होता था ताकि भीड़ आ सके। फिलहाल दूर से देखने पर यह अब भूत बंगला सरीखा दिखता है। दो मंजिला दीवार की खिड़कियों के ज्यादातर पल्ले गायब हो चुके हैं। जो बचे हैं वे तेज हवा के झोंके में कब गिर जाएं कोई ठीक नहीं। दीवार भी जर्जर हो चुकी है।किसी दिन तेज आंधी इसे भी गिरा सकती है। इसके मालिकानों को सामने की दीवार रखना मजबूरी है। सरकार के नियम के अनुसार किसी सिनेमा हाल को ध्वस्त कर अगर कोई शॉपिंग कॉम्प्लेक्स बनता है फिर भी एक छोटा पिक्चर हाल रखना जरूरी है। इस सिनेमाघर का इतिहास लगभग सात दशक पुराना है। एक पारसी शावक गांधी ने साहू परिवार से जमीन लीज पर लेकर इस सिनेमाहाल का निर्माण कराया था। नाम रखा शीरीन टाकीज। पुराने लोग बताते हैं कि दो दशक तक यह सिनेमा हाल धुंआधार चला। इसमें दोस्ती और गंगा जमुना जैसी सुपर डूपर हिट फिल्में लगीं। शावक गांधी ने ही मजदा सिनेमा बनवाया था जो बंद होकर अब वाहन स्टैंड में तब्दील हो गया है। सिनेमा उद्योग से जुड़े तथा दीपक सिनेमा के मालिक दीपक शापुरी बताते हैं कि शावक गांधी पहले नावेल्टी सिनेमा में मैनेजर हुआ करते थे।सन पचास के दशक में उन्होंने शीरीन टाकीज बनवाया था। बहुत कम लोगों को पता होगा कि दीपक सिनेमा का नाम पहले नावेल्टी हुआ करता था।अब दीपक भी नहीं रहा। टीवी और मल्टीप्लेक्स की आंधी में यह भी उड़ गया।अब यहां शापुरी माल बना है। शीरीन टॉकीज करीब दो दशक तक धड़ल्ले से चला फिर अचानक बंद हो गया।बरसों तक बंद रहा फिर नई साज सज्जा के साथ सत्तर के दशक में प्राची के नाम से खुला। प्राची भी लगभग दो दशक तक चला। इस दौरान इसमें आई एस जौहर की फाइव राइफल्स और बी आर चोपड़ा की निकाह जैसी फिल्में लगी जिसने गोल्डन जुबली मनाई। मुस्लिम बाहुल्य इलाका होने की वजह से यहां मुस्लिम पृष्टभूमि पर बनी ज्यादातर पिक्चर लगती थी। फिर यह भी बंद हो गया। बरसों की बंदी के बाद अंत में यह साहू पैलेस के नाम से फिर खुला। जब साहू पैलेस खुला उस समय तक तमाम मनोरंजन सैटलाइट चैनल लांच हो चुके थे।केबुल टीवी घर घर पहुंच चुका था। लोग सिनेमा हाल जाने से कतराने लगे थे। इस दौर में अपना अस्तित्व बचाने के लिये शहर के अन्य सिनेमाघरों की तरह साहू पैलेस को भी सस्ती अंग्रेजी फिल्मों का सहारा लेना पड़ा। इसके दर्शक या तो समाज के निचले तबके के लोग होते थे या स्कूली छात्र और युवा, लेकिन इस दर्शक वर्ग के सहारे कब तक सिनेमा हाल चलता। इसी दौरान मोबाइल युग का पदार्पण भी हो गया जिसने ताबूत में अंतिम कील ठोंक दी। लगभग दो दशक पहले साहू भी बंद हो गया। अब देखने वाली बात यह होगी कि इसके नए मालिक इसे ध्वस्त कर क्या बनाते हैं। फिलहाल इस रास्ते से गुजरते समय यह सिनेमाघर कुछ पुरानी यादों को जरूर कुरेदता है। इसके बंद होने से इससे जुड़े पचासों परिवार बेरोजगार हो गए हैं।इसमें मैनेजर से लेकर गेट कीपर और कॉफी शॉप से लेकर साईकल स्टैंड वाले शामिल हैं।