वाराणसी(काशीवार्ता)। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, कृषि विज्ञान संस्थान के शताब्दी कृषि प्रेक्षागृह में 17 सितम्बर से आयोजित सात दिवसीय संगीतमय श्री राम कथा के सातंवे दिन प्रख्यात मानस मर्मज्ञ आचार्य शान्तनु जी महाराज ने श्री रामचरित मानस के विभिन्न पहलुओं से सभागार में भारी संख्या में उपस्थित छात्र-छात्राओं, शिक्षकों, अधिकारियों व कर्मचारियों के अतिरिक्त काशी के सुधि जनों ने मानस की सरिता मे गोते लगाएं। बताते चले कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के आह्नान पर एस.एम.ए-1 नामक असाध्य बीमारी से जूझ रहे नन्हे बालक के सहायतार्थ इस राम कथा का आयोजन किया गया है। आचार्य श्री के साथ छात्र-छात्राओं ने आध्यात्म से जुड़कर व्यक्तित्व विकास पर प्रश्न किये जिसका आचार्य श्री ने सारगर्भित उत्तर दिया। श्री राम कथा में अपने विचार व्यक्त करते हुए आचार्य श्री ने कहा कि समस्त ग्रंथो एवं शास्त्रों का सार है श्री रामचरित मानस। मानस भारत की आध्यात्मिक शक्ति का प्राण है, भारत का आध्यात्म, धर्म एवं सनातन मनुष्य को देवत्व तक यात्रा कराती है। उन्होने कहा कि राम ही राष्ट्र है और राष्ट्र ही राम है, इनको अलग नही किया जा सकता, जब-जब इन दोनो को अलग करने का प्रयास हुआ है देश को संकट का सामना करना पड़ा है। आचार्य श्री ने भगवान श्री राम के विवाह के पश्चात प्रसंगो को अत्यन्त मार्मिक एंव संगीतमय ढंग से प्रस्तुत किया। कहा कि गुण और दोष बदल सकता है लेकिन स्वभाव नही बदल सकता, सीसे में स्वयं को देखने का तात्पर्य आत्म मूल्यांकन, आत्म दर्शन करना होता है। उन्होने कहा कि मन से बड़ा दर्पण कोई नही होता है। श्रद्धा गंगा की तरह निर्मल एवं अविरल होनी चाहिए। उन्होने कहा अशुभ काम को टालना शुभ काम को तत्काल करना चाहिए।