(अजीत सिंह)
गाजीपुर (काशीवार्ता)। वर्ष 2019 में बसपा सांसद अफजाल अंसारी से चुनाव हारने के बाद सियासी वनवास काट रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा के जीवन में अचानक महामहिम राष्ट्रपति की चिट्ठी सुखद एहसास लेकर आई। वह तारीख थी 6 अगस्त 2020 जब उन्हें नरेंद्र मोदी सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति ने जम्मू एवं कश्मीर का उपराज्यपाल नियुक्त कर दिया। इस पत्र ने उनके सियासी जख्म को थोड़ा कम तो जरुर किया। एलजी बनने के बाद पहली बार गाजीपुर आए तो उनका जोरदार स्वागत हुआ। पूरी भाजपा स्वागत में जुटी थी। लंका मैदान में अपने स्वागत से अभिभूत होकर उन्होंने कहा कि देश में रहूं, चाहे प्रदेश में रहूं, चाहे कौनों भेष में रहूं, रउरे कहइबो, रउरे कहइबो। मनोज सिन्हा ने यह कहकर दो दिसंबर 2020 को ही जता दिया था कि उन्हें कश्मीर अच्छा नहीं लग रहा है। वह लहुरीकाशी की जनता के साथ रहना चाहते हैं। उनका साफ इशारा था कि वह 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। उनकी बात अब चरितार्थ होने लगी है।
उन्होंने यह संकेत यहां जाने के बाद लगातार दिया। जिले के लोगों को मां वैष्णों देवी का सुविधाजनक तरीके से दर्शन कराना। यहां के लोगों से हमेशा मिलना।
यही नहीं एलजी सोशल मीडिया पर इस कदर एक्टिव रहते हैं कि अपनी पूजा से लेकर, भोजन करने और राजभवन की सियासी सीढ़ियों पर चढ़ते समय भी फोटो डालकर लोगों को अपनी याद ताजा कराते रहते हैं। इससे साबित होता है कि कश्मीर के राजभवन में रहने वाले एलजी मनोज सिन्हा लहुरीकाशी की सियासत में एक बार फिर धमाकेदार इंट्री मार सकते हैं। अगर वह 2024 के चुनाव में वापस आते हैं तो यह चुनाव बहुत ही रोचक होगा। क्योंकि उनके पास अपने विकास की गाथा सुनाने के लिए सैकड़ों सियासी अभिलेख होंगे। आज भी श्री सिन्हा का विकास उनकी यादों को ताजा करता है।