पराली जलेगी, मगर नहीं उठेगा धुआं


वाराणसी(काशीवार्ता)। बीएचयू में कृषि वैज्ञानिक डॉ. राम स्वरूप मीणा को भारत सरकार ने बायोचार मिलाकर खेती करने का प्रोजेक्ट दिया है। पराली जलेगी, मगर धुआं नहीं उठेगा। पराली जलकर कोयला की तरह से बन जाएगी। इसमें 100% शुद्ध कार्बन डाई आक्साइड होता है। इसे खेत में मिला दें तो यह उस जमीन की ऊर्वरता कई गुना बढ़ा देगी। मिट्टी में सीओ- 2 कंटेंट 500 साल से भी ज्यादा समय तक फेविक्विक की तरह से चिपक जाता है।
दुनिया में पहली इस तकनीक की खोज काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान संस्थान में हुई है। डॉ. मीणा ने बताया कि सरकार ने रिसर्च के लिए 3 साल का समय दिया है। हम बीएचयू के एग्रो फार्म में करीब 20 बिस्वा जमीन पर गेहूं की फसल में यह प्रयोग कर रहे हैं। प्लॉट वाइज सैंपल्स बांटे गए हैं। एक खेत में गन्ने के छिलके का सुलगा बुरादा, तो वहीं दूसरे में पराली से बना बायोचार। वहीं, अलग-अलग प्लॉट में कार्बन कंटेंट भी अलग- अलग रखा गया है। किसी-किसी प्लॉट में खाद भी दिया जा रहा, वहीं किसी में बिल्कुल भी नहीं। इस तरह से अलग-अलग मानकों पर इस तकनीक की टेस्टिंग हो रही है। डॉ. मीणा ने कहा कि आजकल पराली को या तो जला देते हैं या फिर, उसका खाद बनाकर खेतों में फैला देते हैं। मगर, ये दोनों प्रक्रिया वातावरण में सीओ 2 इमीशन को बढ़ावा देती है। जलने के बाद धुएं के रूप में, वहीं खाद बनकर खेतों से गैस फॉर्म में बनकर वातावरण से मिल जाता है। मगर, जब यह बायोचार के रूप में खेत में मिलाया जाएगा तो यह कभी भी खेतों को नहीं छोड़ेगा। एक तरह से किसान वातावरण के कार्बन को सोखकर अपनी जमीन में डाल रहा है। इससे फसलों की पैदावार बढ़ जाएगा। मिट्टी को केमिकल फर्टिलाइजर की जरूरत नहीं होगी। वहीं, अनाज की क्वालिटी भी काफी अच्छी होगी। बहरहाल, इस पर काम हो रहा है। एक फसल पूरी होने बाद इस तकनीक की फाइंडिंग सरकार के सामने पेश की जाएगी। बताया कि बाटी-चोखा जितने के खर्च और जगह में ही पराली को बायोचार बनाया जा सकता है। 10 फीट चौड़े और गहरे गड्ढे में रखकर 100 किलोग्राम पराली जला दें तो हमें 20 किलोग्राम बायोचार मिल जाएगा। इस गड्ढे में वेंटिलेशन के लिए दो पाइप लगाते हैं। एक से आसपास का शुरूआती धुआं निकलता है, वहीं दूसरे पाइप से आॅक्सीजन अंदर की ओर आता है। कुछ समय छोड़ दें तो पराली सुलगकर बायोचार बन जाती है। उनका कहना है कि एक बार बायोचार बनने के बाद वे गड्ढे को डिस्मेंटल कर देते हैं।
कृषि वैज्ञानिकों की देखरेख में बीएचयू में हो रही बायोचार से गेहूं की खेती