चौंकिये मत यह झील नहीं कोदई चौकी है जनाब


(विशेष प्रतिनिधि)
वाराणासी(काशीवार्ता)। काशी का एक इलाका है कोदई चौकी। गंगा नदी से बामुश्किल 500 मीटर दूर। इस इलाके का एक इतिहास है। जानकर बताते हैं कि बरसों पहले यहां कोदो के चावल की मंडी थी। कोदो का चावल मोटे किस्म का होता है जो गरीब जनता का कभी निवाला होता था। यहां दर्जनों दुकानें थीं।यहां का चावल दूर दूर तक जाता था।जब बासमती और अन्य उन्नत किस्म के चावल की किस्में आयीं तो कोदो चावल की मांग कम होती गयी।धीरे धीरे चावल मंडी खत्म हो गयी और अब वहां इलेक्ट्रॉनिक सामानों की पूर्वांचल की सबसे बड़ी मंडी बन गयी। यहां इलेक्ट्रॉनिक सामानों की छोटी बड़ी सैकडों दुकानें है। ज्यादातर माल दिल्ली से आता है जो यहां होते हुए पूर्वांचल के छोटे छोटे कस्बों में जाता है।पास में ही इलेक्ट्रिकल सामानों की भी थोक मार्केट है। दोनों ही मार्केट की खासियत है कि यहाँ पूरे बनारस में सबसे सस्ता माल मिलता है।इसलिये दूर दूर से लोग खरीददारी करने आते हैं। रजाई गद्दों की भी मार्केट यहीं हैं।तीनों मार्केट मिला कर करोडों का कारोबार होता है।जाहिर सी बात है कि जब इतना लंबा चौड़ा कारोबार होता है तो सरकार को राजस्व की भी काफी प्राप्ति होगी। लेकिन सरकार को भारी राजस्व देने वाले इस मार्केट की स्थिति यह है कि बाजार की मुख्य सड़क इन दिनों झील बनी हुई है। कहीं पाइप फटी है तो सीवर चोक है जिससे सारा पानी सड़क पर ही जमा है। सड़क पहले से जर्जर है। इसी रास्ते से होकर नेमि जन और हजारों श्रद्धालु गंगा और काशी विश्वनाथ के दर्शन पूजन को जाते हैं। पास में ही दशास्वमेघ थाना और कन्हैया चित्र मंदिर भी है।यहीं पर मिठाई की मशहूर दुकान मधुर जलपान भी है। काशीवासियों की इनसे अनगिनत यादें जुड़ी हुई हैं।लेकिन हैरत की बात है कि काशी के हृदय में बसे इस इलाके की न तो नगर निगम और न ही स्थानीय जनप्रतिनिधि सुध ले रहे हैं। यह इलाका शहर के दक्षिणी विधानसभा के अंतर्गत आता है जिसके प्रतिनिधि नीलकंठ तिवारी हैं जो प्रदेश सरकार में धर्मार्थ कार्य मंत्री भी हैं। इलाकाई लोगों ने उनसे कई बार क्षेत्र की दशा सुधारने की मांग की परन्तु कुछ नहीं हुआ।
नगर निगम की सफाई चौकी भी निगल गए अतिक्रमणकारी
कोदई चौकी में में कभी नगर निगम की सफाई चौकी हुआ करती थी।इलाके के लोग सफाई के संबंध में अपनी शिकायतें यहां दर्ज कराते थे। लेकिन निगम की लापरवाही और भ्रष्ट कर्मियों की मिलीभगत से सफाई चौकी का अस्तित्व ही खत्म हो गया। अतिक्रमणकारियों ने सफाई चौकी की जगह दुकानें आबाद कर दी।लोगों का कहना है कि जब निगम अपनी संपत्ति की रक्षा नहीं कर सकता तो आमजनता के मूलभूत अधिकारों की क्या रक्षा करेगा।