(रामयश मिश्र)
वाराणसी(काशीवार्ता)। विश्व की सबसे प्राचीन व धार्मिक नगरी काशी को देखने के लिए देश-विदेश से लाखों सैलानी आते हैं और मां गंगा के तट पर बने घाटों मठ-मंदिरों को देखकर आनंद की अनुभूति करते हैं। इसके साथ ही वह काशी की संस्कृति व विरासत को भी जानना चाहते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए स्मार्ट सिटी योजना के तहत घाटों पर साइनेज बोर्ड लगाने का काम चल रहा है। इसके तहत हर घाट पर लगने वाले बोर्ड पर उस घाट की पौराणिकता एवं उसके ऐतिहासिक महत्व को दर्शाया गया है, लेकिन असि घाट पर लगे बड़े लोहे के साइनेज बोर्ड पर जो कुछ दर्शाया गया है, वह एक मजाक बनकर रह गया है। साइनेज बोर्ड पर आधी अधूरी व गलत जानकारी लिखी गई है। साइनेज बोर्ड पर असि घाट के महत्व को दर्शाते हुए लिखा गया है कि यहां पर सुबह ए बनारस द्वारा सांस्कृतिक आयोजन किया जाता है, जबकि असि घाट की पहचान असि व गंगा नदी के संगम से है। साथ ही यहां पर असी संगमेश्वर महादेव का मंदिर है जो काफी प्रसिद्ध है। साइनेज बोर्ड में इसका कहीं भी जिक्र नहीं है। ठीक उसी तरह तुलसी घाट के बारे में लिखा है कि यहां पर नागनथैया लीला का मंचन होता है, जबकि यह श्री रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास के नाम से प्रसिद्ध है। गोस्वामी जी ने यहीं पर श्री रामचरितमानस के चार कांडों की रचना भी की। तुलसी घाट पर ही प्राचीन दक्षिण मुखी हनुमान सहित चारों दिशाओं के हनुमान जी का मंदिर है, जिसे तुलसीदास जी ही द्वारा स्थापित किया गया है। जिसका कहीं भी जिक्र नहीं है। इसी तरह से हर घाटों के बारे में आधी-अधूरी जानकारी साइनेज बोर्ड में दी गई है। इस आधी-अधूरी जानकारी के कारण घाट पर आने वाले पर्यटकों में काशी की छवि खराब हो रही है।
साइनेज पर दी गई आधी-अधूरी जानकारी दुर्भाग्यपूर्ण
शंकट मोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वंभर नाथ मिश्र ने बताया कि असि घाट की पहचान विष्णुपदा गंगा व असि नदी के संगम से है। असि नदी के नाम से ही इस घाट का नाम असि घाट पड़ा। यहां पर असीम संगमेश्वर महादेव का मंदिर है। यहां पर हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन दर्शन पूजन करने आते हैं। ठीक उसी तरह तुलसी घाट की पहचान मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास महाराज से है। घाट पर लगे साइनेज बोर्ड पर गोस्वामी जी व असि नदी को नहीं दर्शाना दुर्भाग्यपूर्ण है। जिला प्रशासन को इस तरफ ध्यान देकर इसे ठीक कराना चाहिए।