वाराणसी (काशीवार्ता)। सेंट जॉन्स, मढ़ौली इस नाम से शायद ही कोई अनजान हो, मगर यहां की शिक्षा शैली के बारें में कम ही लोग जानते होंगे। यहां बच्चों की शिक्षा के साथ ही नैतिकता का भी पाठ पढ़ाया जाता है, जिसका संभवत: अब लोप हो चुका है। ‘काशीवार्ता’ से एक मुलाकात में सेंट जॉन्स मढ़ौली के प्रिंसिपल फादर हेनरी ने कहा, केवल रटंत विद्या से काम नहीं चलेगा, बच्चों की अन्य गतिविधियों पर भी नजर रखनी होगी। उनके अंदर छिपी प्रतिभा को छोटे उम्र में ही पहचान कर उसे उसी राह पर आगे ले जाने का प्रयास करना चाहिए, जिसमें उसकी रुचि हो।
सेंट जॉन्स मढ़ौली वर्ष 1987 में स्थापित हुआ। 46 साल बाद भी विद्यालय ने अपनी शिक्षा नीति से कभी कोई समझौता नहीं किया। यहां बच्चो को पढ़ाने का जो पैटर्न अपनाया जाता है वो शायद कहीं और नहीं है। यही नहींयहां पढ़ने वाले बच्चो को इस तरह की शिक्षा दी जाती है जिससे उनमें दूसरों की मदद करने की भावना बलवती हो।
सुबह 4 बजे से काम में लग जाते हैं
फादर की दिनचर्या में निराश्रितों की सेवा भी शामिल है।जिसके लिये वे सुबह चार बजे उठ जाते हैं तथा परिसर में बने चर्च में प्रार्थना के बाद यदि किसी को मदद ही जरुरत होती है तो फादर हेनरी तन मन और धन से उसके लिए खड़े रहते हैं। फादर बताते हैं उन्हें जीवन में आध्यात्म की ओर और बढ़ना है। ताकि जिस उद्देश्य से प्रभु ने इस संसार में भेजा है, उसे पूरा किया जा सके।
अनुशासन के बिना कुछ भी संभव नहीं
फादर कहते हैं बच्चों में अनुशासन का होना बहुत आवश्यक है। और यह बाल अवस्था में ही डाला जा सकता है।इसके बिना व्यक्तिव का सपना साकार नहीं किया जा सकता। अनुशासन ही सफलता की वह कुंजी है, जिससे हम समाज व देश को एक नई दिशा दे सकते हैं।
मजहब नहीं, इंसानियत का भाव हो
फादर हेनरी कहते हैं, बच्चों में मजहब का नहीं बल्कि इंसानियत का भाव होना चाहिए। विद्यालय में सभी मजहब के बच्चें एक साथ लंच करते हैं, एक ही बोतल से पानी भी पी हैं। फिर बाहर ऐसा क्या होता है जो उनके मन में नफरत की भावना पनप जाती है। इस पर अभिभावको को भी चिंतन करना चाहिए। बच्चों को थैक्यू व सॉरी भी बोलना सीखना चाहिए।
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