कम उम्र में ही बच्चों को बड़ा बनाने में लगे हैं हम!


वाराणसी(काशीवार्ता)। जल्दी किस बात की है। बच्चों को समय से पहले बड़ा करने की या अपनी जिम्मेदारियों से जल्दी छुटकारा पाने की। आज अभिभावक अपने किशोर बच्चों को बाइक की चाबी देने में अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा समझते हैं। 12-13 वर्ष में बच्चे गाड़ी लेकर हवा से बातें करने लगे हैं, चाहे अंजाम जो हो। सर्वे कहता है कि भारत में 32 से 35% दुर्घटना के लिए किशोर जिÞम्मेदार होते हैं। परिवहन विभाग द्वारा आंकड़ा दिया गया कि हाईवे और सड़क हादसों में 10,622 नाबालिक बच्चों की मौत हुई, जिसमें 3417 बच्चे खुद ही गाड़ी चला रहे थे। न जाने इन्हें जल्दी है किस बात की, शायद खुद भी इन्हें यह नहीं पता। बस सब कुछ समय से पहले ही मिल जाए, स्वतंत्रता, मुक्ति, अधिकार, वर्चस्व व दिखावा या सब कुछ। जब आप सड़क पर निकलतें हैं तो ध्यान दिया है 50 से 70% स्कूली बच्चे स्कूटी व बाइक से स्कूल अथवा कोचिंग संस्थानों को जाते मिलेंगे। एक पर दो तीन नहीं बल्कि कभी कभी चार-चार बच्चे भी बैठे दिखाई दे जाएंगे। बात सिर्फ वाहन चलाने की ही नहीं है, बल्कि इस स्वतंत्रता का दुरुपयोग कहां-कहां हो रहा है, हमें यह सोचने की जरूरत है। एक तो बच्चे नशे की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं जिसका अंदाजा भी अभिभावकों को नही चलता। दरअसल, गाड़ी हाथ में आती है तो जेब में पैसे भी देने पड़ते हैं। कब, कहाँ खराब हो जाए, बनवाने के लिए पैसे की जरुरत तो पड़ेगी। यह समस्या लगभग सभी मध्यम दर्जे वाले अभिभावकों के साथ है। जिनको शायद वे जानकर भी अनदेखा कर रहे हैं। देखा जाए तो हम हर बात पर स्कूल को कोसते हैं। पर क्या कभी सोचा है कि हर जिम्मेदारी सिर्फ स्कूल प्रशासन की है? कुछ नैतिक जिम्मेदारियां हमारी भी तो हैं। सरकार ने 18 वर्ष वयस्कता की उम्र को निर्धारित किया है, हम यह क्यों भूल गए। नियम कानून से खेलते ये बच्चे बिना हेलमेट के वो भी तेज रफ्तार में फर्राटे भरते शहर के किसी भी इलाके में दिख जाते हैं। पर अफसोस की इतनी बड़ी लापरवाही हमारे और आपके घर से ही शुरू होती है।
1ं8 साल की उम्र इसलिए है तय
18 साल से कम उम्र में इंसानी दिमाग ड्राइविंग के लिए पूरी तरह सक्षम नहीं होता। इसी कारण 18 वर्ष ड्राइविंग लाइसेंस के लिए निर्धारित किया गया है। इस उम्र में हार्मोन बदलाव के कारण बच्चे दिखावा व खतरनाक स्टंट करने का साहस दिखाते हैं या यूं कहें कि दुस्साहस करते हैं। जिस उम्र में उन्हें अनुशासन का पाठ पढ़ाया जाना चाहिए उस उम्र में हम बच्चों को नियम-कानून तोड़ने की शिक्षा दे रहे हैं। हर वर्ष अपराधी की उम्र छोटी होती जा रही है। जिस तरह छोटे बच्चों के हाथ में स्मार्टफोन देकर हम उन्हें साइबर अपराध की ओर धकेल रहे हैं, ठीक उसी तरह वाहन देकर सामाजिक अपराध को प्रोत्साहन दे रहे है।