वाराणसी(काशीवार्ता)। मध्यकालीन भारत के इतिहास में एक बादशाह हुमायूं का नाम आता है जिसके बारे में कहा जाता हैं कि वह जिंदगी भर लुड़कता रहा और लुडकते-लुड़कते ही मस्जिद की सीढ़ियों से लुड़क कर दुनिया से अलविदा हो गया। ऐसी ही कुछ घटना महापौर मृदुला जयसवाल के साथ भी जुड़ी रही 6 जनवरी 2018 को शुरू हुई सदन की हंगामे दार बैठक 21 सितंबर 2021 में अंतिम बैठक के साथ संपन्न हुई। इस बैठक में 70 सभासद मौजूद थे। बताया जाता हैं कि भाजपा के मेयर की कड़ी में पांचवी महापौर मृदुला जयसवाल ने 12 दिसंबर 2017 में शपथ लेने के बाद चौकाघाट स्थित सांस्कृतिक शंकुल में प्रथम बैठक आहूत की थी। यहां पर एक पार्षद के शोक प्रस्ताव पर हंगामा इतना बढ़ा कि सभासदों ने महापौर को उनकी गाड़ी में बैठ कर जाने नहीं दिया। महापौर सांस्कृतिक शंकुल से पुलिस संरक्षण में पैदल ही निकल पड़ी और बड़ी मुश्किल से तेलियाबाग चौराहे पर पहुंच कर दूसरी गाड़ी से अपने घर जा सकीं। इस प्रकरण में उस समय 6 सभासदों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज होने के साथ उनकी गिरफ्तारी भी हुई थी। इसके बाद सदन की अन्य बैठके भी छोटे मोटे हंगामे के साथ चली जिनका समापन 21 सितंबर 2021 को टाउनहॉल में स्थित विजयनगरम हाल में आयोजित बड़े हंगामे के साथ हुआ। इसके बाद डेढ़ वर्ष तक अपने कार्यालय में महापौर ने कोई बैठक नही बुलाई जबकि नगर निगम अधिनियम के अंतर्गत साल में 12 मिनी सदन और 6 कार्यकारणी की बैठक बुलाए जाना निर्धारित है इस अंतिम बैठक में नगर निगम के इतिहास में पहली बार किसी महापौर ने नाराज होकर सभी अधिकारियों को बैठक से बाहर जाने का निर्देश दिया था बजट की बैठक थी और सभासदों की मेज पर लंच का पैकेट रखा था इसी बीच महापौर के निर्देश पर लेखा अधिकारी मनोज त्रिपाठी बजट पढ़ने लगे। इस पर पार्षद नाराज हो गए और खाना और माइक एक दूसरे पर फेकने का अभियान शुरू हो गया इसी के साथ कुर्सी मेज भी पलटी जाने लगी। इस घटना से महापौर इतना नाराज हुई कि उन्होंने राष्ट्रगान शुरू करने के साथ ही बैठक अनिश्चित काल के लिए स्थगित करने की घोषणा कर दी। हंगामे के बीच उनके द्वारा राष्ट्रगान प्रस्तुत करने के तौर तरीको पर भी बाद में सभासदों ने उनपर आरोप प्रत्यारोप लगाए। अफरा तफरी का ऐसा माहौल सदन में बहुत कम ही दिखाई देता है।