कोविड-19 महामारी का तिलिस्म आखिर क्या गुल खिलायेगा!


(आलोक श्रीवास्तव)
वाराणसी (काशीवार्ता)। सामूहिक अंत: करण को झकझोरने के लिए एक महामारी और उसके बाद लॉकडाउन की जरूरत जिसकी कई तस्वीरें सामने आईं। एक मां अपना सूटकेस घसीटते हुए सड़क पर चली जा रही है और उस सूटकेस पर उसका थका-मांदा बच्चा सोया है। सूरत से अपने घर के लिए निकले एक नौजवान ने थकान के आगे जिंदगी हार चुके अपने दोस्त को गोदी में ले रखा था। साइकिल पर अपने असमर्थ पिता को लेकर 12 सौ किमी दूर अपने घर लौटती 15 वर्ष की एक लड़की। ज्यों-ज्यों ये तस्वीरें सामने आईं एक महात्रासदी का खुलासा करने लगीं। जिसके लिए विपक्षी पार्टी के लोगों ने पीएम मोदी को देशव्यापी लॉकडाउन के लिए दोषी ठहराते हुए कहा कि दिहाड़ी मजदूरों को बेकारी के दिनों की तैयारी के लिए वक्त ही नहीं मिल सका। स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने सरकार को चेतावनी दी कि प्रवासियों के उनके गृह राज्य लौटने से कोविड-19 शहरी क्षेत्रों के साथ ही गांवों में दाखिल हो सकता है जहां स्वास्थ्य सेवाओं का बुनियादी ढांचा बेहद ही खराब स्थिति में है। हालांकि कोई यह मानने को तैयार नहीं था न ही सरकार के पास प्रवासी मजदूरों के आंकड़े थेजो उनकी सही स्थिति बयां कर पाता। प्रश्न यह उठता है कि आखिर इस महामारी का तिलिस्म कब टूटेगा।
ज्यों-ज्यों लॉकडाउन बढ़ता गया दुश्वारियां बढ़ती गईं: केंद्र सरकार ने ज्यों-ज्यों लॉकडाउन बढ़ाया प्रवासी कामगार और खासकर दिहाड़ी मजदूर घर लौटने के लिए बेताब होते गए। रोजगार और आमदनी के स्रोत खत्म होते जा रहे थे संकट से निपटने की कोई तैयारी नहीं थी। ऐसे में प्रवासी श्रमिकों के पास न तो पैसा था और न ही गुजारा करने की कोई सूरत दिखाई दे रही थी। लॉकडाउन ने उन्हें जहां रहने की दिक्कत थी वहीं दूसरी ओर बाहर जाने पर पुलिस की यातनाएं झेलना था। बावजूद इसके 80 प्रतिशत से ज्यादा प्रवासी श्रमिक सड़कों पर निकल आये और पैदल ही अपने घरों का रूख कर लिए। इस आवाजाही का अंदाजा ही नहीं लग सका। ज्यादातर प्रवासी कामगार इसलिए चले दिए क्योंकि उनके मकान मालिकों ने उन्हें निकाल दिया और उनके पास रहने के लिए कोई जगह नहीं रह गई थी। लॉकडाउन की अवधि को लेकर अनिश्चितता ने असुरक्षा को और तीव्र कर दिया।
कोविड-19 के कारण मानसिक रोगियों में इजाफा: कोविड-19 का संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है इसका असर लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है। अवसाद और आत्महत्या जैसी प्रवृत्ति बढ़ रही है। मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मानें तो वैश्विक महामारी कोविड-19 के वायरस से संक्रमित लोगों में तीव्र घबराहट के कारण अवसाद के चलते आत्महत्या की घटनाओं में इजाफा हो रहा है। घबराहट, संक्रमण का भय, अत्यधिक बेचैनी, नींद में परेशानी, बहुत ज्यादा चिंता, बेसहारा महसूस करना व आर्थिक मंदी की आशंका ने लोगों में अवसाद इसके प्रमुख कारक हैं।
हेल्थ वर्कर झेल रहे मानसिक परेशानी: कहने को तो कोविड-19 के दौरान योद्धा की भूमिका निभा रहे हेल्थ वर्कर मानसिक परेशानी झेल रहे हैं। जिसका प्रमुख कारण नई गाइड लागू होने से हेल्थ वर्कर को क्वारन्टीन की सुविधा का न मिलना। हेल्थ वर्कर ड्यूटी खत्म कर जब अपने घर जा रहे हैं तो उन्हें डर बना रह रहा है कि कहीं उनके परिवारीजन कोविड पॉजिटिव न हो जायें। हालात यह है कि ये हेल्थ वर्कर भय व डर के माहौल में काम करने को मजबूर हो रहे हैं। पहले उन्हें 14 दिन ड्यूटी करने के बाद 14 दिन क्वॉरेंटाइन किया जाता था। अब महज 4 दिन किया जा रहा है, वो भी घर पर ही।

भर्ती मरीजों को लोग देख रहे शक की नजर से

कोरोना इंफेक्शन के चलते अस्पताल में भर्ती हर मरीज को लोग शक की नजर से देख रहे हैं। अस्पताल में अचानक होने वाली हर मौत को संदिग्ध मानकर उसका कोरोना टेस्ट कराया जा रहा है और टेस्ट रिपोर्ट आने में देर होने की वजह से नॉन कोविड मरीज के परिजनों को अपने परिजन के मृत शरीर को लेने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। सूत्रों की मानें तो मरीज की मृत्यु के बाद उसके शव को परिजनों को कई दिन तक इंतजार करना पड़ रहा है। ऐसा ही एक मामला बीएचयू का प्रकाश में आया है जहां कोरोना पॉजिटिव 55 वर्षीय व्यक्ति की मृत्यु होने के उपरांत उसके शव को परिजनों को सौंप दिया गया। जिसकी सूचना जिला प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग ने सोमवार की शाम तक जारी मेडिकल बुलेटिन में नहीं दी।