जिसका कोई नहीं उसका अमन


(आलोक श्रीवास्तव)
वाराणसी (काशीवार्ता)। उजड़ी जिंदगी में तमन्नाओं के चिराग कौन जलाएगा ? सब अपने-अपने दीये संभालने में लगे हैं, किसी को किसी की फिक्र नहीं होती, कौन किसके काम आता है। यह तो आजकल का एक सामान्य दृश्य है। पर कुछ लोग हैं जो दूसरों के लिए ही बने हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही सख्स के बारे में बताने जा रहे हैं, जो अपने लिए नही बल्कि दूसरों के लिए जीता है। उसका नाम है अमन कबीर। जी हां, ये शख्स पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में रहता है और गरीब व बेसहारा लोगों की मदद करने को हमेशा तत्पर रहता है। अमन ने काशीवार्ता को बताया कि सेवा ही मेरे लिए सब कुछ है। शहर में कहीं भी लाचार, घायल, बीमार व कोई गुमशुदा किसी को दिखे तो हमें सूचित कर दें। मैं उसकी मदद के लिए हमेशा तैयार रहता हूं। अब तक न जाने कितने ही लोगों की मरहम पट्टी कर उन्हें बेहतर इलाज हेतु अस्पताल में भर्ती करा चुका हूं। 2007 में जब वाराणसी में बम विस्फोट हुआ तो लोग जहां तहां पड़े हुए थे। कोई उनकी सेवा के लिए आगे नहीं आ रहा था। मुझसे उन लोगों की हालत देखी नहीं गई, तब से ही मैंने यह कार्य शुरू किया। पिताजी कई बार कहते हैं, तुम ये सब क्या करते हो,लेकिन फिर भी मैं ऐसा ही करता हूं। मौसम और समय कोई भी हो, बस फोन की एक आवाज आने पर गरीब-बेसहारों की मदद के लिए निकल जाता हूं। अमन ने बताया कि एक बार मेरे पिता ने मुझे रोकने के लिए मेरे हाथों में जंजीर तक बांध दी थी, लेकिन मेरी जिद्द के आगे उन्हें झुकना पड़ा और अंतत: मुझे छोड़ दिया।
लावारिस शवों का दाह संस्कार करना जुनून
अकेले ही लावारिस शव लेकर श्मशान घाट पहुंच जाना और उपलब्ध संसाधनों के माध्यम से उनका दाह-संस्कार करवाना अब अमन का जुनून बन गया है। शायद ही कोई दिन ऐसा होता हो जिस दिन उसे किसी शव का दाह संस्कार न कराना पड़ता हो। जिस दिन अमन के पास इस काम के लिए पैसे नहीं होते है उस दिन घाट के लकड़ी विक्रेता उसे बिना पैसे के ही लकड़ी उपलब्ध कराते है। बाद में अमन धीरे-धीरे उनका पैसा चुकता करता है। बताते हैं कि 13 मई को एक महिला की कैंट स्टेशन के पास मृत्यु हो गई। उसके पति के पास उसके दाह संस्कार के लिए एक रुपया भी नहीं था और न ही कोई कंधा देने वाला। पति की स्थिति यह थी कि, दो कदम भी चल पाना उसके लिए मुश्किल था। ऐसे में सूचना मिलने पर अमन वहां पहुंचा और महिला के दाह संस्कार की व्यवस्था कर मणिकर्णिका घाट पहुंचा और उसका दाह संस्कार कराया। 2007 से लेकर आजतक अमन कितने शवों का दाह-संस्कार करा चुका है, इसका हिसाब खुद उसके पास नहीं है।
पीएम मोदी ने अमन के कार्यों को सराहा
अमन कबीर के इस सेवा भाव को देखते हुए पीएम मोदी ने भी उसकी सराहना की। अमन को कई सामाजिक संस्थायें सम्मानित कर चुकी हैं, पर मजे की बात तो यह है की ये सामाजिक संस्थाएं भी उसके इस कार्य में आर्थिक मदद हेतु आगे नहीं आती।
कोरोना महामारी के दौरान जब इंसानियत दम तोड़ रही थी और इस महामारी से दम तोड़ने वालों को कंधा देने वाले नहीं मिल रहे थे तब काशी के अमन कबीर देवदूत बन कर सामने आए। कोरोना काल में अमन कबीर सुबह से लेकर देर रात तक एक इलाके से दूसरे इलाके में जाकर असहायों की मदद में जुटा रहा। यह जानकार फक्र महसूस होता है कि काशी नगरी में कोई ऐसा भी है, जो इस आपदा में भी नि:स्वार्थ भाव से लोगों की सेवा में जुटा है। जब लोगों को अपने चार लोगों के कंधे नसीब नहीं हो रहे थे तो अमन उन्हें कंधा देता और शमशान घाट पहुंचाकर दाह संस्कार करवाता था।
1 रू.
की मुहिम से
लोगों की सेवा
अमन लोगों से एक रुपया मुहिम से जुड़ने के लिए लगातार अपील करता है, जिससे लावारिस लोगों का दाह-संस्कार व उनका इलाज किया जा सके। अमन ने बताया कि लोग इतने निष्ठुर हो चुके हैं कि एक रुपया मुहिम में भी मदद करने को आगे नहीं आते। कभी-कभी कोई समाजसेवी सामने आ जाता है और अपनी तरफ से 10-5 हजार की मदद कर देता है। बस इसी तरह से इस मुहिम को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहा हूँ।