सांस्कृतिक संक्रमण के बावजूद आज भी विद्यमान है संगीतालय में गुरु-शिष्य परंपरा


सोनभद्र। संगीतालय गुरुकुल है, यहां पर शास्त्रीय संगीत के संस्कार से संस्कारित करते हैं संगीत के गुरु। संगीत के मधुर सुर- ताल- गीत आदिकाल से सभी चराचर जीव- जंतु, पेड़- पौधो को नव जीवन प्रदान करते रहे हैं। वर्तमान परिवेश में संगीत थेरेपी के माध्यम से जटिल रोगों की चिकित्सा भी की जा रही है।
भारतीय शास्त्रीय संगीत का वर्णन हमारे वेदों में किया गया है और आज भी वैदिक कालीन परंपरा संगीत के माध्यम से जीवित है । तमाम प्रकार के सांस्कृतिक संक्रमण के बावजूद प्रत्येक संगीतालय में गुरु- शिष्य की परंपरा आज भी विद्यमान है भगवान शिव सारे जगत के गुरु हैं। गुरु पूर्णिमा के दिन उन्होंने सप्त ऋषियों को योग की शिक्षा प्रदान की थी।आज ही के दिन भगवान बुद्ध को बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्ति हुई थी। भारतीय समाज एवं संस्कृति में ईश्वर से भी उच्च पद गुरु को प्रदान किया गया है और यह परंपरा अनंत काल तक कायम रहेगी।
उपरोक्त विचार वरिष्ठ साहित्यकार एवं संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश लखनऊ के अयोध्या शोध संस्थान द्वारा संचालित रामायण कल्चर मैपिंग योजना के डिस्ट्रिक्ट कोआॅर्डिनेटर दीपक कुमार केसरवानी ने गुरु पूर्णिमा के अवसर पर जनपद मुख्यालय रॉबर्ट्सगंज के सुर संगम संगीतालय में आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किया।संगीतालय के प्रबंधक गुरु विनीत नंदन ने मुख्य अतिथि को सम्मानित करते हुए कहा कि-“गुरु पूर्णिमा हमारा आदिकालीन पर्व है और इस अवसर पर संगीत से जुड़े हुए सभी शिष्य को अपने- अपने गुरुकुलो मे उपस्थित होकर गुरु वंदना करनी चाहिए। कार्यक्रम में गुरु विनीत नंदन, श्वेता केसरी, गिरीश सिंह, परवेज, शिवम केसरी, प्रमोद श्रीवास्तव, गुंजन श्रीवास्तव, शिवा राम सिंह के कुशल निर्देशन में आराधना हुई।संचालन गुरु श्वेता केसरी ने किया। इस अवसर पर नगर के साहित्यकार, पत्रकार, विशिष्ट नागरिक एवं संगीत प्रेमी उपस्थित रहे।