गांधी जी का बीएचयू व पं. मालवीय से गहरा लगाव रहा


वाराणसी। आज पूरा देश राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 74वीं पुण्यतिथि मना रहा है। बापू का धर्म नगरी काशी में बीएचयू और भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय से गहरा लगाव रहा। महात्मा गांधी बनारस आकर 4 बार काशी हिंदू विश्वविद्यालय के विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल हुए। यही वजह है कि विश्वविद्यालय के मालवीय भवन भारत कला, भवन में बीएचयू स्थापना काल से लेकर स्वतंत्रता आंदोलन तक के चित्रों को संजोकर रखा गया है। इन तस्वीरों को देखने से पता चलता है कि मालवीय जी और गांधीजी के संबंध कितने मधुर थे।
आने वाली पीढ़ी को सही दिशा निर्देश देने के लिए भारत की कई विभूतियों का चित्र यहां संजोकर रखा गया है। विश्वविद्यालय परिसर में गांधी चबूतरा मौजूद है, जहां पर 1942 में बापू ने संध्या वंदन किया था। आज भी यहां 2 अक्टूबर और 30 जनवरी को काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, शिक्षक कर्मचारी और छात्र पुष्पांजलि अर्पित कर बापू को नमन करते हैं। बापू अपने पूरे जीवन काल में लगभग 11 बार बनारस आए, जिसमें 4 बार वह काशी हिंदू विश्वविद्यालय पधारे। पहली बार 6 फरवरी 1916 को दूसरी बार 1920 में, इसके बाद 10 फरवरी 1921 को काशी विद्यापीठ की स्थापना के समय वही आखरी बार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी रजत समारोह में 21 जनवरी 1942 को विश्वविद्यालय आएं। स्वतंत्रता आंदोलन में बापू की महत्वपूर्ण भूमिका रही। बापू को बनारस से लगाव था। अपने काशी आगमन के बारे में गांधीजी ने महामना पंडित मदन मोहन मालवीय को एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने लिखा कि मेरे लिए काशी हिंदू विश्वविद्यालय एक तीर्थ के समान है। विश्वविद्यालय से बापू को बहुत ही स्नेह था। महात्मा गांधी जानते थे कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना जन सहयोग से हुआ है। बापू विश्वविद्यालय को एक महान विश्वविद्यालय के रूप में देखना चाहते थे। बापू और महामना यह चाहते थे कि यहां के शिक्षक और विद्यार्थी एक मानवीय रूप के तहत देश के प्रति समर्पित हो।