लोभ व मोह ही मानव के दुख का बड़ा कारण: संभव राम


वाराणसी(काशीवार्ता)। मंगलवार को पड़ाव स्थित अघोरेश्वर महाविभूति स्थल के प्रांगण में अघोरेश्वर भगवान राम का 31वां महानिर्वाण दिवस बाबा भगवान राम ट्रस्ट, श्री सर्वेश्वरी समूह एवं अघोर परिषद ट्रस्ट के अध्यक्ष तथा अघोरेश्वर महाप्रभु के उत्तराधिकारी पूज्यपाद औघड़ बाबा गुरुपद संभव राम के सान्निध्य में श्रद्धा एवं भक्तिमय वातावरण में मनाया गया। इस अवसर पर प्रात:कालीन सफाई श्रमदान के पश्चात बाबा गुरुपद संभव राम ने अघोरेश्वर महाप्रभु की भव्य समाधि में अघोरेश्वर महाप्रभु की प्रतिमा के समक्ष पुष्पांजलि, माल्यार्पण, पूजन एवं आरती किया। पृथ्वीपाल ने सफलयोनि का पाठ किया। तत्पश्चात बाबा ने हवन का कार्यक्रम संपन्न किया।
इस अवसर पर आयोजित एक विचार-गोष्ठी बाबा गुरुपद संभव राम के सान्निध्य में आयोजित की गयी। श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए बाबा ने अपने आशीर्वचन में कहा- दूर-दूर से यहां आकर हमलोग इकट्टा होते हैं, फिर भी हमारा अभीष्ट सिद्ध नहीं हो पाता, हमलोग वंचित रह जाते हैं। उसके कारणों पर हमारी अघोर ग्रंथावली में परमपूज्य अघोरेश्वर ने प्रकाश डाला है। हमलोग देख भी रहे हैं कि समाज में निरंतर गिरावट आती जा रही है। इतने धर्मग्रन्थ होते हुए भी सामाजिक बुराईयाँ कम होने के बजाय बढ़ती ही जा रही हैं। लूट-पाट, मार-काट, झूठ-फरेब, हत्या-बलात्कार और एक-दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति व्याप्त हो रही है। आजकल तो हमारे अपने लोग ही हमारे साथ यह सब करने से नहीं हिचकते। यह सब धर्म-मजहब के नाम पर हो रहा है। धर्म के नाम पर जितना खून बहाया जा रहा है उतना शायद ही किसी और नाम पर बहाया गया हो। आज हम यह सोचने को मजबूर हैं कि या तो ये धर्मग्रन्थ अपूर्ण हैं या इतने सारे हो गए हैं कि हम भ्रमित हो गए हैं कि हम किसका अनुसरण करें। इसी के समाधान के निमित्त परमपूज्य अघोरेश्वर महाप्रभु ने एक रास्ता हमलोगों को दिया है। जो लोग भी महाप्रभु की वाणियों का अध्ययन करके उसका अनुसरण करते हैं वह बहुत ही शांत रहते हैं और इतने शक्तिशाली हो जाते हैं कि विपरीत-से-विपरीत परिस्थितियों से अपने व अपने परिवार को निकालने में सक्षम दिखाई देते हैं। औघड़ गुरूपद संभव राम ने कहा कि लोभ और मोह के वशीभूत होकर हम कोई कृत्य करेंगे तो कोई भी सुखी नहीं रह सकता। यही नियति रहेगी, तो संपन्न होते हुए भी वह दुखी रहेगा। भरा-पूरा परिवार भी आपस में लड़ते-झगड़ते, झंझट करते नजर आएंगे। सीता जी के कहने पर कंचन मृग के पीछे जिस तरह रामचन्द्र जी गए थे, जबकि वह भी जानते थे कि सोने का मृग होता नहीं है, लेकिन फिर भी वह उनके जिद के चलते गए और सारी समस्याएँ उसके बाद ही शुरू हुयीं। तो बंधुओं! हमलोग भी कहीं-न-कहीं उस कंचन-मृग के पीछे अपने, अपने परिवार को, अपने समाज को, अपने राष्ट्र को उसी में झोंक दे रहे हैं। यह भी एक प्रकार का देशद्रोह है। लोग इसको देशद्रोह इसलिए नहीं कहते कि इस पर जबरदस्ती जनस्वीकृति की मुहर लगवा दी गयी है कि हाँ यह सब किया जा सकता है, यह तो सिस्टम है। यहाँ इतने सालों से हमारा आना-जाना कहीं व्यर्थ न हो जाय, इसीलिए मैं यह सब आपलोगों से कह रहा हूँ। यह शरीर ही जाएगी, वह आत्मा अजर-अमर है, उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। इतनी सी बात यदि हमें समझ में आ जाएगी तो हो सकता है कि हम अपने भविष्य को उज्जवल बना सकें। आपलोग जागरूक हों और समाज में जागरूकता को बढ़ाएं। हम चाहेंगे कि आप उस महापुरुष की वाणियों का अवलंबन लेकर समाज की ऐसी विपरीत परिस्थितियों में कीचड़ में कमल के सदृश हों। तो समाज के तथाकथित अगुवा, नेता लोगों के बरगलाने में आप न आवें। साधुताई में कोई जाति-भेद, ऊंच-नीच नहीं होता है। आप अपने विवेक बुद्धि का उपयोग करें। आपका स्वानुशासन में रहना. शील, शालीनता का पालन करना सबको अच्छा लगता है, लेकिन आगंतुक विचारों के प्रभाव में कुछ-न-कुछ उपद्रवी दिमाग के हो ही जाते हैं। गोष्ठी की अध्यक्षता डॉ. वीपी सिंह ने की। डॉ. बामदेव पाण्डेय ने गोष्ठी का संचालन किया। हरिहर यादव ने धन्यवाद
ज्ञापित किया।