इंडियन पैरेंट्स की ये हैं 6 बड़ी गलत आदतें, कर देती हैं बच्चों का आत्मविश्वास चकनाचूर


बच्चों की अच्छी परवरिश एक बड़ा मुश्किल काम है. कई बार परिजनों के लिए तय करना कठिन हो जाता है कि बच्चों को समझाने का कौन सा तरीका ज्यादा बेहतर है. पैरेंटिंग से जुड़ीं कुछ गलतियां कई बार बच्चों पर बुरा असर भी डालती हैं. बच्चों के साथ एक मजबूत रिश्ता स्थापित करना जरूरी होता है, इसलिए परिजनों को ऐसी गलतियां दोहराने से बचना चाहिए.

दूसरों के सामने अनुशासन में रखना– लोगों के लिए गुस्से पर काबू करना उस वक्त मुश्किल हो जाता है, जब बच्चे दूसरों के सामने मिसबिहेव या गलती कर देते हैं. दूसरों के सामने बच्चों को अनुशासन में रहने के लिए बाधित करने से वे शर्मिंदा या अपमानित महसूस करते हैं. इससे बच्चों के आत्मविश्वास और स्वाभिमान को ठेस पहुंचती है. बेहतर होगा कि आप बच्चों को दूसरों के सामने धमकाने की बजाय थोड़ा शांत रहें और सही समय आने पर उन्हें प्राइवेट में समझाएं.

दूसरों से बच्चों की तुलना– अपने बच्चों की दूसरे बच्चों के साथ तुलना करने से वे असुरक्षित महसूस कर सकते हैं. ऐसा होने पर वे असहज महसूस करने लगेंगे. जब बच्चों की तुलना दूसरों से होती है तो उनका आत्मविश्वास और स्वाभिमान कमजोर पड़ने लगता है. योग्यताओं के आधार पर उनकी तुलना ना करें. उदाहरण के लिए, आपके बच्चे का क्लासमेट कितनी तेजी से गणित के सवाल हल कर लेता है, इस पर ध्यान देने की बजाय अपने बच्चे की ताकत और क्षमताओं को पहचानें.

बुरे व्यवहार पर बहुत ध्यान देना– बच्चों का खराब बिहेवियर देखते ही पैरेंट्स उन्हें रोकना-टोकना शुरू कर देते हैं. माता-पिता अक्सर ये बात भूल जाते हैं कि बच्चे के जिस बिहेवियर से उन्हें परेशानी हो रही है वो उनके लिए फायदेमंद भी हो सकता है. उदाहरण के लिए, अगर बच्चे पढ़ाई-लिखाई से ज्यादा वक्त बाहर की ताजा हवा में खेलने में बिताते हैं तो इससे उनका शारीरिक और मानसिक विकास होगा.

गैर-वास्तविक उम्मीदें स्थापित करना– पैरेंट्स होने के नाते बच्चों को एक कामयाब इंसान बनाना हर इंसान का सपना होता है. हालांकि अनरियलिस्टिक यानी गैर-वास्तविक अपेक्षाएं स्थापित करने से सिर्फ निराशा ही हाथ लगेगी. बच्चे को परफेक्ट बनाने की लालसा परिवार में किसी के लिए सहायक नहीं है, उसमें हम भी शामिल हैं. बच्चा जब आपके बनाए पैमानों को पूरा नहीं कर पाता तो उसमें निराशा, क्रोध, गलती होना या डिप्रेशन जैसी समस्याएं बढ़ने लगती हैं. इसकी बजाए बच्चों को उनकी क्षमताओं के अनुसार उड़ान भरने का मौका दें. उन्हें वो काम करने दें जिस काम में वो माहिर हैं.

नियम स्थापित करने में असफल होना– पैरेंट्स को बच्चों के लिए एक स्पष्ट गाइडलाइंस लागू करने की आवश्यकता होती है. बच्चों के हेल्दी डेवलपमेंट के लिए ऐसा करना बहुत जरूरी हो जाता है. माता-पिता बच्चों के लिए नियम-कानून बनाते हैं ताकि उन्हें पता रहे कि क्या करना है और क्या नहीं. खासतौर से बात जब उनकी सुरक्षा और सेहत से जुड़ी हो तो ऐसा करना बहुत जरूर हो जाता है. सीमाएं निर्धारित होने से बच्चे सुरक्षित महसूस करते हैं.

परिवार को समय ना देना– पैरेंट्स कई बार बहुत ज्यादा व्यस्त हो सकते हैं, लेकिन बच्चों और परिवार के साथ क्वालिटी टाइम बिताना भी बहुत जरूरी है. इस अनुभव के बिना बच्चे खुद को नरजअंदाज किए जाने जैसा फील कर सकते हैं. इससे उनमें इमोशनल मेंटल डिस्ट्रेस और यहां तक कि एन्जाइटी और डिप्रेशनी जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं. अपने बच्चों के साथ हर दिन क्वालिटी टाइम बिताने का ख्याल रखें. उनके साथ खेलें, खाने से जुड़ी बातें करें उनके साथ किताबें पढ़ें.