काशी विश्वनाथ धाम: इन इमारतों पर भी मंडरा रहा धराशायी होने का खतरा, दहशत में जी रहे लोग


काशी विश्वनाथ धाम में गोयनका छात्रावास में हादसे के बाद नेपाली मंदिर और आश्रम के धराशायी होने का खतरा मंडरा रहा है। मंदिर के महासचिव ने काशी से नेपाल तक कई बार गुहार लगाई है, लेकिन संरक्षण के लिए कोई कदम नहीं उठाया जा सका है। श्री काशी विश्वनाथ धाम क्षेत्र में प्राचीन मकान बने हैं। हालांकि धाम परिक्षेत्र के मकानों को ध्वस्त कर दिया गया है लेकिन अभी भी कुछ इमारतें खड़ी हैं। भारी भरकम मशीनों से दिन रात काम होने के कारण इन मकानों की हालत धीरे-धीरे जर्जर हो चुकी है। 

ललिता घाट स्थित नेपाली मंदिर के चारों तरफ खोदे गए गड्ढों में बरसात के दौरान पानी भर जाने से मंदिर के क्षतिग्रस्त होने का खतरा बढ़ गया है। 10 से 30 फीट के गड्ढों में बरसात का पानी भरा था और मंदिर के दीवार से सटी मिट्टी भी दरकनी शुरू हो गई थी। मशीनों के दबाव से मंदिर की दीवारों में पहले से ही दरार पड़ी हुई है। 

छह महीने से ललिता घाट पर भारी मशीनों से काम चल रहा है। लकड़ी से निर्मित मंदिर व आश्रम की दीवारों में कंपन होता है। सबसे ज्यादा खराब हालत मंदिर के वृद्धाश्रम की है। यहां रहने वाली महिलाओं को रात-दिन दीवारों के गिरने का डर रहता है। आश्रम की तरफ तो गड्ढों की गहराई 40 फीट से भी ज्यादा है।

नेपाली मंदिर प्रबंधन का कहना है कि समय रहते इसे दुरुस्त नहीं किया गया तो बरसात से आश्रम व मंदिर ध्वस्त हो सकता है। महासचिव डॉ. गोपाल प्रसाद अधिकारी ने जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा व मुख्य कार्यपालक अधिकारी सुनील कुमार वर्मा को पहले ही पूरे मामले से अवगत कराया था।

उन्होंने मंदिर व आश्रम के संरक्षण के लिए नेपाली दूतावास को भी पत्र लिखा था, लेकिन कोरोना के कारण पुरातत्व विभाग की टीम नहीं आ सकी। दीवारों की खस्ता हालत को देख धर्मशाला को खाली करा दिया गया है। वहीं, मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी सुनील कुमार वर्मा ने बताया कि गोयनका छात्रावास के ध्वस्त होने की जांच पीडब्ल्यूडी से कराएंगे।

मानकों की अनदेखी पड़ी भारी काशी विश्वनाथ कॉरिडोर में मंगलवार को गोयनका छात्रावास के गिरने और मजदूरों की मौत में कार्यदायी संस्था और मंदिर प्रशासन की बड़ी लापरवाही सामने आ रही है। महीनों से आधा तोड़कर गोयनका छात्रवास को जर्जर हालत में छोड़ने की बातें सामने आ रही हैं और सबसे अहम बात कि जर्जर भवन को बैरिकेड कर उसका रास्ता रोकने का प्रयास भी नहीं किया गया। ऐसे में साफ है कि कॉरिडोर में मानकों की अनदेखी भारी पड़ी और अब हादसे का रूप ले लिया।

50 हजार वर्गमीटर में बन रहे काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के लिए 300 से ज्यादा भवनों का अधिग्रहण किया गया था। दो साल से ज्यादा समय से इस परिक्षेत्र में भवनों को गिराने का काम चल रहा है। इसमें बड़ी मशीनों के चलने और कार्यदायी संस्था के साथ स्थानीय अधिकारियों की लापरवाही के चलते सुरक्षा मानकों का पूरा ख्याल नहीं रखा जा रहा है।

गोयनका छात्रावास को आधा से ज्यादा गिराया गया था और जर्जर भवन को कई दिनों से उसी हालत में छोड़ दिया गया था। ऐसा ही हाल ज्यादातर भवनों के साथ होता है। हादसे के बाद स्थानीय अधिकारियों ने बताया कि गोयनका छात्रावास पर कोई काम नहीं चल रहा था।

ऐसे में साफ है कि उस भवन को तोड़ने में सुरक्षा मानक का ख्याल नहीं रखा गया और उसे जर्जर हालत में छोड़ दिया गया था। यहां बता दें कि पहले भी भवनों को गिराने में सुरक्षा मानकों का पालन नहीं होने के कारण कई मंजिला भवनों के भरभरा कर गिरने की घटना हो चुकी है। मंदिर प्रशासन की लापरवाही के चलते गोयनका छात्रावास भवन बड़े हादसे का कारण बन गया।