काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद के पुरातात्विक सर्वेक्षण पर हाईकोर्ट की रोक, मुस्लिम पक्ष ने जताई थी आपत्ति


वाराणसी में विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद जमीन को लेकर पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने के सिविल कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है। जस्टिस प्रकाश पाडिया की सिंगल बेंच ने सर्वेक्षण पर रोक लगाते हुए सभी पक्षों से 2 हफ्ते में नए सिरे से जवाब दाखिल करने को कहा है। तब तक के लिए निचली अदालत के फैसले पर रोक लगी रहेगी। अदालत के फैसले से मुस्लिम पक्षकारों को फौरी राहत मिली है। अगली सुनवाई 8 नवंबर को होगी।

अंजुमन इंतजामिया मसाजिद व यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की याचिका पर स्टे का फैसला देते हुए अदालत ने सिविल जज सीनियर डिविजन फास्ट ट्रैक कोर्ट के आदेश को निराधार बताया।कोर्ट का कहना था कि ऊपरी अदालत में मामला लंबित होने के बावजूद निचली कोर्ट को आदेश देने का अधिकार नहीं है। 

8 अप्रैल 2021 को वाराणसी के सीनियर डिवीजन सिविल जज ने वाद मित्र की याचिका पर सर्वेक्षण का आदेश दिया था। एएसआई से खुदाई कराकर सर्वेक्षण के जरिए हकीकत का पता लगाने के लिए पांच सदस्यीय कमेटी बनाने को कहा था। मुस्लिम पक्षकारों ने सिविल जज के इस आदेश पर असहमति जताते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। मस्जिद की इंतजामिया कमेटी और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने इस आदेश के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। 31 अगस्त को सुनवाई पूरी होने के बाद हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित कर लिया था।

ज्ञानवापी में नए मंदिर के निर्माण और हिंदुओं को पूजा पाठ करने का अधिकार देने आदि को लेकर वर्ष 1991 में मुकदमा दायर किया गया था। मामले में निचली अदालत व सत्र न्यायालय के आदेश के खिलाफ 1997 में हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। हाईकोर्ट से कई वर्षों से स्टे होने से वाद लम्बित रहा। 10 दिसंबर 2019 में प्राचीन मूर्ति स्वयंभू लार्ड विश्वेश्वर के वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी ने सिविल जज सीनियर डिविजन (फास्ट ट्रैक कोर्ट) आशुतोष तिवारी की अदालत में आवेदन देकर अपील की थी कि ढांचास्थल के पुरातात्विक सर्वेक्षण के लिए निर्देशित किया जाये। दावा किया कि ढांचा के नीचे काशी विश्वनाथ मंदिर के पुरातात्विक अवशेष हैं। 

अपील में कहा गया कि मौजा शहर खास स्थित ज्ञानवापी परिसर के 9130, 9131, 9132 रकबा नं. एक बीघा 9 विस्वा लगभग जमीन है। उक्त जमीन पर मंदिर का अवशेष है। 14वीं शताब्दी के मंदिर में प्रथमतल में ढांचा और भूतल में तहखाना है। इसमें 100 फुट गहरा शिवलिंग है। मंदिर हजारों वर्ष पहले 2050 विक्रमी संवत में राजा विक्रमादित्य ने, फिर सतयुग में राजा हरिश्चंद्र और 1780 में अहिल्यावाई होलकर ने जीर्णोद्धार कराया।