अवतरण दिवस पर डुबकी लगा गंगा को किया नमन


वाराणसी। गंगा दशहरा के मौके पर बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में गंगा तट पर सुबह से ही आस्था परवान चढ़ रही है। दिन चढ़ने के साथ ही वातावरण में जहां गर्मी का असर भी चढ़ा वहीं पुण्य सलिला गंगा की गोद में पुण्य की डुबकी लगाने वालों की आस्था भी उमड़ती रही। सुबह पुण्य काल में सूर्योदय के साथ ही शुरू हुआ गंगा स्नान दिन चढ़ने तक जारी रहा। गंगा तट पर गंगा आरती सूर्योदय के साथ की गई तो स्नान के बाद दान की परंपराओं का भी आस्थावानों ने निर्वहन किया। दूसरी ओर गंगाधर शिव के दरबार में भी लोगों ने हाजिरी लगाई और बाबा को नमन कर आशीर्वाद प्राप्त किया। दशाश्वमेध घाट पर गंगा दशहरा पर स्नान की परंपरा की मान्यता रही है। ऐसे में गंगा स्नान करने के बाद लोगों ने घाट पर ही गरीबों को यथा सामथर््य दान की परंपरा का निर्वहन किया। मान्यताओं के अनुरूप गंगा के अन्य घाटों पर स्नान के साथ ही पर्व की परंपरा जीवंत दिखी। मान्यताओं के अनुसार मां गंगा का पृथ्वी पर अवतरण जेष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि में वृष लग्न में हुआ था। इस बार दशमी तिथि गुरुवार रात 3:08 बजे शुरू हुई और रात 2:26 बजे तक रहेगी। वृष लग्न 3:42 से तक 5:37 बजे था। सूर्योदय 5:14 बजे हुआ और इसके बाद भीड़ बढ़ने लगी। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार वृष राशि में सूर्य व बुध, मेष राशि में राहु व शुक्र तथा मीन राशि में मंगल और गुरु का संचरण पुण्य फलदायी है।
बाबा दरबार में लगी आस्था की कतार
गंगाधर भगवान शिवशंकर के दरबार काशी विश्वनाथ मंदिर में सुबह से ही गंगा स्नान करने के बाद भक्तों का आवागमन शुरू हो गया। बाबा दरबार में आस्थावानों के आने जाने का क्रम शुरू होने के साथ ही बाबा का धाम हर हर महादेव के उद्घोष से गूंज उठा। दोपहर तक बाबा दरबार में हजारों लोग हाजिरी लगा चुके थे। आधी रात के बाद से ही स्नानार्थियों की भीड़ गंगा किनारे पहुंचने लगी थी। दशाश्वमेध घाट समेत अन्य घाटों पर संतों, भक्तों के डेरे जहां-तहां पड़े थे। भोर में ही घंट-घड़ियाल की गूंज के साथ स्नान आरंभ हो गया। घाट की सीढ़ियों पर कहीं महिलाएं दीपदान कर रही थीं तो कहीं समूहों में हल्दी-चंदन की अल्पनाएं बनाकर मंगल गीत गाए जा रहे थे। दशहरा पर काशी में दो लाख से अधिक श्रद्धालुओं के डुबकी लगाने का अनुमान है।