नगर निगम परिवहन विभाग वाहनों की मरम्मत पर 9 करोड़ खर्च!


बिना टेंडर काम तमाम, जांच रिपोर्ट में खुलने लगी है पोल
(डा.के.के.शर्मा)

वाराणसी (काशीवार्ता)। नगर निगम के जगचर्चित परिवहन विभाग में चल रही विभागीय जांच में घोटालों की परत दर परत पोल खुलती जा रही है। एक ही वाहन के पूरे साल दस-दस बार मरम्मत कराई गई। ऐसी मिली 120 नई फाइलों में वर्ष 2018-19 में 577 बार रिपेयरिंग कराने की बात सामने आयी है जिसकी टीम जांच कर रही है। फाइनल रिपोर्ट दो दिन बाद आयेगी। यह कहना है जांच अधिकारी अपर नगर आयुक्त देवी दयाल का। निगम सूत्रों की माने तो परिवहन विभाग के घोटालों में सबसे बड़ा आश्चर्यजनक पहलू यह है कि 9 करोड़ के वाहन मरम्मत के कार्य बिना टेंडर के ही करा दिये गये हैं। मजेदार बात यह भी है कि वाहन मरम्मत के एक पोर्टल जेम के नाम पर टेंडर हुये ही नहीं, मात्र कंपनी के रेट को आधार बना कर काम करा दिये गये। इन सारे घोटालों की खास बात यह भी रहीं कि विभागीय कार्य के लिये जिन फर्मो का रजिस्टेÑशन हुआ है वह अनावसीय न होकर आवासीय है। अर्थात घर में ही उनकी फैक्ट्री। जहां वर्कशाप रहे निगम के वाहनों की धड़ल्ले से रिपेयरिंग कराई जाती रही। इन सबके अलावा खास बात यह भी रही कि टेंडर के नाम पर जो लिफाफे फाइलों में लगाये गये इन पर किसी का भी अता-पता नहीं है। एक महत्वपूर्ण बात यह भी रही कि कोई भी लेटर कहीं से भी मुड़ा नहीं है। फाइलों में धीरे से घुसेड़ दिया गया है। इन फाइलों पर अपर नगर आयुक्त से लेकर लेखाधिकारियों के हस्ताक्षर भी दिखाई दिये हैं। खास बात यह है कि इसी परिवहन विभाग मेें वर्ष 19-20 में अब तक वाहन मरम्मत 118 बार हो चुके है। जबकि पूर्व में 577 बार। इस संबंध में जांच अधिकारी देवी दयाल से बात करने पर उन्होंने बताया कि जांच में कई ऐसी नई फाइलें मिलती जा रही है जिन्हें जांच रिपोर्ट में शामिल करना आवश्यक है। इसलिये जांच कार्य में विलम्ब हो रहा है। निगम में इस बात की भी चर्चा है कि पूर्व नगर आयुक्त को भी झांसे में लेकर उनके आगमन पर 31 मार्च का हवाला देकर कई अनाप शनाप फाइलें जल्दीबाजी में पास करा ली गई थी। वहीं विभाग में इस बात की भी चर्चा है कि जांच रिपोर्ट आने के बाद शायद शासन स्तर से पूरे प्रकरण में एसआईटी जांच की कार्रवाई न हो जायें। अगर ऐसा होगा तो नगर निगम परिवहन विभाग के कई घोटालेबाजों का नाम उजागर हो सकता है। अब देखना यह है कि जांच रिपोर्ट आने के बाद अधिकारी क्या कदम उठाते हैं?