अब तो रस्म अदायगी भी नहीं होती


(राजेश राय)
वाराणसी (काशीवार्ता)। यातायात सप्ताह या पखवाड़ा हर साल मनाया जाने वाला एक ऐसा सरकारी पर्व है जिसके बारे में आसानी से कहा जा सकता है कि रस्म अदायगी का इससे बेहतरीन उदाहरण देखने को नहीं मिलेगा। स्कूली बच्चों को यातायात नियमों के बारे में बताने से लेकर तिराहों चौराहों पर पैम्फलेट वितरण व लाउडस्पीकर से नियमों का पालन करने की नसीहतें इस रस्म अदायगी में शामिल है। इस अवधि में यातायात विभाग थोड़ा सक्रिय होकर रोजाना होने वाले चालान की संख्या में वृद्धि दिखाकर यह बताने का भी प्रयास करता है कि विभाग चुस्त व मुस्तैद है। दिखावे के तौर पर चौराहों- तिराहों पर यातायात पुलिस बावर्दी मुस्तैद दिखने की कोशिश करती है। लेकिन आश्चर्य का विषय है कि इस बार ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा। यातायात पुलिस रस्म अदायगी की भी जरुरत नहीं समझ रही है। न कहीं बैनर न पोस्टर न पैम्फलेट का वितरण। स्कूली छात्र- छात्राओं को भी जागरुक करने का कोई प्रयास नहीं हो रहा है। संयोग ही है कि इस साल यातायात सप्ताह का आयोजन एन त्योहार के वक्त हो रहा है। सड़कों पर भीड़ हैं। रोज कहीं न कहीं से जाम की खबरे आ रही है। परन्तु ट्रैफिक मैनेजमेंट कहीं नहीं दिख रहा। सब कुछ ट्रैफिक सिग्नल व सीसीटीवी कैमरे के भरोसे छोड़ दिया गया है। यह स्थिति तब है जब जिले के पुलिस कप्तान अमित पाठक की प्राथमिकता सूची में शहर व बाहरी क्षेत्रों की यातायात व्यवस्था सबसे ऊपर है। वे रोज शहर व ग्रामीण क्षेत्रो ंकी किसी न किसी सड़क पर उतरकर यातायात व्यवस्था की कमान खुद संभाल लेते हैं। यह उन्हीं की देन है कि अब मोहनसराय से लेकर कछवां तक हाइवे पर जाम नहीं लगता। उन्होंने थानेदारों को ताकीद कर दी है कि हाइवे पर ट्रकें बेतरतीब न खड़ी हों।
उन्होंने शहर में भी यातायात व्यवस्था सुधारने में उल्लेखनीय कार्य किया। मोडिफाइड साइलेंसरयुक्त बुलेट मोटर साइकिलों के खिलाफ उन्होंने सख्त रुख अपनाया। इसका नतीजा यह हुआ कि शत- प्रतिशत बुलेट मोटर साइकिलों से कानफाड़ू साइलेंसर उतर गये। शहर में ट्रकों की बिना वक्त इन्ट्री भी बंद हो गयी। समस्त थानेदारों को भी इस क्षेत्र में भ्रमण कर यातायात जाम न लगने का निर्देश है। लेकिन दुर्भाग्य का विषय है कि जिस विभाग के ऊपर यातायात व्यवस्था की सम्पूर्ण जिम्मेदारी है वह उम्मीदों पर खरा नहीं उतर रहा। संभवत: इसके पीछे इस विभाग के पदाधिकारियों की थैंकलेस जाब व दण्ड स्वरुप पोस्टिंग वाली मानसिकता जिम्मेदार है। ऐसा नहीं है यातायात विभाग के सभी अधिकारी ऐसी मानसिकता रखते हों। ज्यादा दिन पुरानी बात नहीं है।
सुरेश चन्द्र रावत के हाथों में यातायात विभाग की कमान थी। जानकार बताते हैं कि उनके समय में यातायात व्यवस्था में उल्लेखनीय सुधार हुआ। परन्तु उनके जाते ही सारी व्यवस्था जस की तस हो गयी। यातायात विभाग के जिम्मेदारों को समझना होगा कि यातायात नियंत्रण एक विशेषीकृत कार्य है। यह एक ऐसा विज्ञान है जिसके लिये पूर्ण समर्पण की आवश्यकता है। बिना पूर्ण समर्पण के यातायात में सुधार की अपेक्षा करना बेमानी है।