संतान उत्पत्ति में कमी का पता जीन के अध्ययन से चल सकता है : डॉ. नंदिता


वाराणसी (काशीवार्ता)। इंडियन सोसाइटी फॉर असिस्टेड रीप्रोडक्शन द्वारा सिगरा स्थित रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में सतत चिकित्सा शिक्षा के तहत पर्यावरण, तनाव व प्रजनन क्षमता पर एक दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि आईएसएआर की राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ नंदिता पालशेतकर ने कहा कि कई तरह की बीमारियां प्रजनन क्षमता में कमी के कारण हैं। मनुष्य के जीन के अध्ययन से कई बीमारियों के साथ ही प्रजनन क्षमता में कमी की भी जानकारी मिल सकती है। उन्होंने बताया कि हार्मोंस में असंतुलन संतान की उत्पत्ति में कमी के कारण हैं। कहा कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण कुछ प्रजातियां विलुप्त होती जा रही है, जो मनुष्यों को भी प्रभावित कर रही है। मनुष्य में इसके कारण प्रजनन क्षमता घटती जा रही है। इसलिए नई पीढ़ी को इस मामले में ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत है। संस्था की प्रदेश अध्यक्ष डॉ.नीलम ओहरी ने कहा कि मानव जीवन पर पर्यावरण का प्रभाव ज्यादा पड़ता है। वर्तमान में प्रदूषण व तनाव संतान उत्पत्ति में कमी के कारण बन रहे है। कार्यक्रम में डिस्बियोसिस, रिप्रोडक्टिव हेल्थ, एडजुवेंट थैरेपी, पेल्विक इंफ्रामेट्री डिजीज, ओवुलेशन इंडक्शन इन पीसीओएस आदि विषयों पर प्रोजेक्टर के माध्यम से प्रजनन क्षमता पर पर्यावरण व तनाव के प्रभाव की विस्तार से जानकारी दी गई। इस दौरान डॉ.सुजाता कर, डॉ.लवीना चौबे , डॉ.शालिनी टंडन, डॉ.शालिनी श्रीवास्तव, डॉ.नम्रता, डॉ.अनिता चौधरी, डॉ.संगीता राय, डॉ. एल.के.पाण्डेय, डॉ.शैलेंद्र कुमार सिंह, डॉ.माधुरी पाटिल, डॉ.सुलेखा पांडेय, डॉ.अनुराधा खन्ना, डॉ.उषा यादव, डॉ.अंजू जैन, श्रीकांत ओहरी ने तकनीकी पक्षों पर विस्तार से चर्चा की। डॉ.रुचि, डॉ.जिज्ञासा को प्रजनन एवं पर्यावरण संरक्षण सम्बन्धित क्षेत्र में शोध करने पर सम्मानित किया गया। सम्मेलन में वाराणसी आॅस्टेट्रिक एंड गायनिकोलिगल सोसाइटी (वीओजीएस) की भी भागीदारी रही। डॉ लतिका अग्रवाल ने आये हुए अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन किया।