लघु भारत की दिग्दर्शिका है काशी


वाराणसी(काशीवार्ता)। नव संवत्सर को भव्य व दिव्य स्वरूप प्रदान करने के संकल्प के साथ ही इस पावन अवसर का स्वागत केसरिया वस्त्र धारण करके किया जाए । यह आह्वान शुक्रवार को नव संवत्सर की पूर्व संध्या पर आयोजित “सनातन सँस्कृति में नवसंवत्सर का महत्व ” विषयक संवाद और विमर्श कार्यक्रम में काशी के धमार्चार्यों व प्रबुद्धजनों ने किया । कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत करते हुए पूर्व महापौर ने कहा कि नवसंवत्सर को महा उत्सव का स्वरूप प्रदान करने के लिए संस्कृति के प्रतीक हमारी आस्था व श्रद्धा के केंद्र व उनके प्रमुखों के साथ ही समस्त सामाजिक संस्थाओं द्वारा कार्यक्रम आधारित समयबद्ध सघन मुहिम
चलाई जाए। इस पावन अवसर को काशी के समस्त घाटों , मंदिरों – मठों व सामाजिक संस्थाओं में महा उत्सव के रूप में मनाया जाय। मुख्य अतिथि बीएचयू के पूर्व कुलपति प्रो. जीसी त्रिपाठी ने कहा कि काशी सनातन सँस्कृति का केंद्र होने के साथ लघु भारत की दिग्दर्शिका भी है। यहां विविधिता भरी भारतीय संस्कृति जीवन्त है। विशिष्ट अतिथि पद्मभूषण आचार्य देवी प्रसाद द्विवेदी ने कहा भारतीय सनातन संस्कृति का पावन पुनीत पर्व को हम सृष्टि का आरंभ पर्व भी कहते है। इसकी छाया में सौहार्द प्रेम एवं आत्मिक परिशुद्धता का वातावरण पुष्ट होता है।
संवाद और विमर्श की अध्यक्षता साहित्यकार डा जितेंद नाथ मिश्र ने की। प्रमुख ज्योतिषाचार्य पं कामेश्वर उपाध्याय, वरिष्ठ महिला चिकित्सक डा विभा मिश्रा, डा रत्नेश वर्मा, रामावतार पांडेय एडवोकेट, प्रो मारुति नंदन तिवारी, रामनारायण द्विवेदी ने विचार व्यक्त किया। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से सतीश मिश्र, प्रो. ओमप्रकाश सिंह, डॉ अत्रि भारद्वाज, डॉ दीना नाथ सिंह, श्रीकांत महाराज, नंदिता शास्त्री, क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी अमित, अजय श्रीवात्सव चकाचौंध ज्ञानपुरी, समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन मौजूद रहे।