वरुणा को भी इंतजार है किसी भगीरथ का


(विशेष प्रतिनिधि)
वाराणसी(काशीवार्ता)। बहुत दिनों बाद शहर वासियों को एक अच्छी खबर सुनने को मिली। आखिरकार असि नदी के पुनर्रूद्धार के लिए प्रशासन की नींद टूटी। कई अतिक्रमणों पर बुल्डोजर चले। पहले असि एक नदी हुआ करती थी, फिर अतिक्रमण की ऐसी मार पड़ी कि नदी, नाले में तब्दील हो गयी। धीरे-धीरे नाले का भी अस्तित्व जब खतरे में पड़ गया तो जागरूक नागरिकों और ग्रीन ट्रिब्यूनल की चीखपुकार पर शासन-प्रशासन में थोड़ी हलचल मची। असि नदी से अतिक्रमण हटाकर उसे वापस पुराने स्वरूप में लौटाने की मुहिम शुरू तो हो गयी है, पर यह अपने अंजाम पर कब पहुंचेगी यह भविष्य के गर्भ में है, लेकिन इसी बीच जनता को वरूणा नदी के उद्धार की भी चिंता सताने लगी है।
ऐसी मान्यता है कि काशी असि और वरूणा के बीच बसती है, इसीलिए वाराणसी नाम पड़ा। पुराणों में उल्लेख है कि अंत समय में लोग काशी में कल्पवास करने आते थे। काशी में मृत्यु होने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है, लेकिन दुर्भाग्य देखिये कि दूसरों को मोक्ष प्रदान करने वाली नदियां आज खुद मोक्ष के इंतजार में है। इन्हें इंतजार है आधुनिक भगीरथ का, जो इनका उद्धार कर सके। सपा सरकार ने वरुणा नदी के उद्धार के लिए 201 करोड़ रूपये के वरूणा कॉरिडोर की योजना बनायी थी। इसके तहत डीएम आवास से सराय मोहना तक 12 किलोमीटर लम्बे जलमार्ग के दोनों तरफ पाथवे व हरित पट्टी का निर्माण होना था। सर्वे हुआ तो पता चला कि हरित पट्टी में अतिक्रमणकारियों ने लगभग साढ़े सात सौ मकान अवैध रूप से बना लिये हैं। इनमें कई नामी होटल भी शामिल है। बस यहीं से कॉरिडोर का दुर्भाग्य शुरू हुआ। जब वीडीए अतिक्रमण हटाने चला तो भाजपा के एक ताकतवर जनप्रतिनिधि अतिक्रमणकारियों के बचाव में सामने
आ गए।
वीडीए के तत्कालीन वीसी पुलकित खरे ने खुद खड़े होकर अतिक्रमण हटवाना शुरू किया तो उनका असमय तबादला हो गया। सरकार बदली तो सिंचाई विभाग के साथ ही कार्यदायी संस्था यूपीपीसीएल ने भी बचाव का रास्ता तलाशना शुरू कर दिया, क्यों कि परियोजना में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ था। करीब छह माह काम बंद रहा। नयी सरकार ने जांच करायी तो सिंचाई विभाग के अधीक्षण व अधिशासी अभियंता दोषी पाये गये, इन्हें निलंबित किया गया। जब कॉरिडोर नहीं बन पाया, तो प्रशासनिक अधिकारियों ने इसे बैटरी रिक्शा कॉरिडोर बनाने का निर्णय लिया। आज हालत यह है कि करोड़ों खर्च होने के बाद न तो कॉरिडोर का निर्माण हो पाया न वरूणा का उद्धार।