फरियादी एसएसपी दफ्तर जाते ही क्यों हैं?


(राजेश राय)
वाराणसी (काशीवार्ता)। नये पुलिस कप्तान ने कार्यभार ग्रहण करने के बाद बयान दिया है कि अब वे जन शिकायतों की स्वयं सुनवाई करेंगे। जिन थाना क्षेत्रों से ज्यादा शिकायतें आयेंगी तो यह माना जायेगा कि संबंधित थानेदार जनता की शिकायतों का निस्तारण ठीक से नहीं करते हैं। यह महत्वपूर्ण वक्तव्य है। इस लिहाज से भी कि थाने व एसएसपी के बीच अधिकारियों की दो कड़ी और है। वे हैं सीओ व एसपी सिटी। इनमें सीओ की भूमिका ज्यादा महत्वपूर्ण है। सीओ के जिम्मे प्रत्येक थाने में दर्ज मुकदमे के पर्यवेक्षण की जिम्मेदारी होती है। किस मुकदमे में कौन सी धारा लगायी गयी। उचित धारा लगी है या नहीं। विवेचक सही ढंग से मुकदमे की विवेचना कर रहे हैं या नहीं, समय से चार्जशीट दाखिल हुई है या नहीं, यह सारा कार्य सीओ के जिम्मे होता है। अदालत में केस डायरी व अन्य पत्रावलियां भी सीओ दफ्तर से ही जाती हैं। परन्तु इतने महत्वपूर्ण व जिम्मेदारी युक्त अधिकारी के यहां सबसे कम फरियादी पहुंचते हैं। इसके बाद आता है एसपी सिटी का नम्बर। एसपी सिटी मुख्यत: कानून व व्यवस्था के कार्य से जुड़े होते हैं। इसके अलावा अवकाश से लेकर अन्य कार्य होते हैं जिन्हें एसएसपी समय-समय पर देते हैं। अन्त में आता है एसएसपी का पद। एसएसपी जिले की सम्पूर्ण पुलिस व्यवस्था के प्रमुख होते हैं। सीओ से लेकर नीचे तक के पुलिस कर्मियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग से लेकर कानून व्यवस्था तक के कार्यों की सम्पूर्ण जिम्मेदारी एसएसपी पर होती है। देखा गया है कि थाने से सन्तुष्ट न होने पर आम फरियादी सीधे एसएसपी दफ्तर का रुख करता है। सम्भवत: उसे यह भ्रम होता है कि नीचे के अधिकारियों के पाास पर्याप्त शक्तियां नहीं है। यही भ्रम व गलतफहमी एसएसपी दफ्तर में भीड़ बढ़ाती हैं। परिणाम स्वरुप उनका ज्यादा समय फरियाद सुनने में ही व्यतीत होता है। वे न तो कानून व्यवस्था के प्रति पूरा समय दे पाते, न ही ट्रैफिक समस्या, थाने के निरीक्षण आदि महत्वपूर्ण कार्य ही कर पाते हैं। जब एसएसपी यह बयान देते हैं कि उनके पास ज्यादा फरियादी पहुंचने का मतलब है कि थाना स्तर पर आम जनता की ठीक से सुनवाई नहीं हो रही तो उसके लिए सिर्फ थानेदार ही दोषी क्यों है। बीच की दो कड़ी यानी सीओ व एसपी सिटी की जिम्मेदारी क्यों तय नहीं की जाती है। अगर कोई फरियादी सीओ व एसपी सिटी के दफ्तर के चक्कर लगाकर फिर एसएसपी दफ्तर पहुंचता है और वहां उसे न्याय मिलता है तो फिर यह माना जायेगा कि नीचे का पूरा सिस्टम खराब हो चुका है। ऐसी स्थिति में फरियादी को न्याय देने के साथ-साथ निचले स्तर के कर्मचारियों के खिलाफ भी कार्रवाई करनी चाहिए। उम्मीद की जानी चाहिए कि नये पुलिस कप्तान इस व्यवस्थागत कमी की तरफ ध्यान देंगे ताकि उनके दफ्तर में फरियादियों की भीड़ कम हो और निचले स्तर पर आम जनता की सुनवाई हो।